पत्नी अपना और बच्चों का गुजारा करने में सक्षम ना हो तो भरण-पोषण पाने के बाद भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुकदमा दायर कर सकती है: पीएंडएच हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि एक पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती है, इस तथ्य के बावजूद कि उसे अपने पति से गुजारा भत्ता के रूप में एकमुश्त भुगतान मिल चुका है।
मौजूदा मामले में दंपति का विवाह 1983 में हुआ था। दोनों के बीच वैवाहिक विवाद के बाद वे 1993 में अलग रहने लगे। 1993 में किए गए एक लिखित समझौते के तहत पति ने पत्नी और दो बच्चों के रखरखाव के पिछले, वर्तमान और भविष्य के दावों के संबंध में पूर्ण और अंतिम भरण-पोषण के रूप में 3 लाख रुपये जमा किए।
हालांकि, 2007 में पत्नी ने भरण-पोषण के लिए धारा 125 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें 2016 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पठानकोट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और पत्नी को प्रति माह 15,000 रुपये की दर से भरण-पोषण प्रदान किया गया।
इससे व्यथित होकर पति ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पठानकोट के फैसले को रद्द करने के लिए मौजूदा याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता-पति की दलील थी कि धारा 125 के तहत पत्नी की याचिका मंजूर नहीं की जा सकती। यह कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग है। चूंकि मामला पहले से ही पार्टियों के बीच एक लिखित समझौते के माध्यम से तय किया गया था, जिसका याचिकाकर्ता द्वारा अनुपालन किया गया था।
दूसरी ओर, प्रतिवादी पत्नी ने कहा कि वह 2018 में अपनी सेवानिवृत्ति तक केवल 17,000 रुपये कमा रही थी, और आवास, बिजली, पानी और वाहन आदि का खर्च वहन कर पाना उनके लिए संभव नहीं था, क्योंकि उन पर दो बच्चों के खर्च का बोझ है और दोनों कॉलेज के छात्र हैं।
जस्टिस अमरजोत भट्टी की एकल पीठ ने 1993 में निपटारे के बावजूद धारा 125 के तहत याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए कहा,
"इस पर विवाद नहीं हो सकता है कि एक महिला और उसके दो बच्चों के लिए 3 लाख रुपये की मामूली राशि में जीवित रहना संभव नहीं है। 17,000 रुपये की मामूली तनख्वाह में गुजारा करना और अपने दो बच्चों की जिम्मेदारी उठाना संभव नहीं है। उन्हें दैनिक खर्च, भोजन, कपड़े, परिवहन, चिकित्सा व्यय और अन्य सामाजिक दायित्वों की देखभाल भी करनी है। इसलिए उनका सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करना न्यायोचित था।”
तदनुसार, जस्टिस भट्टी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पठानकोट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं पाया, जिसमें पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण राशि रुपये प्रदान करने की बात कही गई थी।
केस टाइटल: सुनील सचदेवा बनाम रश्मि व अन्य
साइटेशन: सीआरएम-एम-5732 (ओ एंड एम) ऑफ 2017