भीमा कोरेगांव मामले में अब उद्धव ठाकरे को नोटिस, आयोग ने पूछा गया- दस्तावेज़ प्रस्तुत क्यों नहीं किए?

Update: 2025-10-31 04:21 GMT

2018 के भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच कर रहे महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त दो सदस्यीय आयोग ने गुरुवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि कुछ दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की मांग वाली याचिका का जवाब न देने पर ज़मानती वारंट क्यों न जारी किया जाए।

गौरतलब है कि जस्टिस (रिटायर) जय नारायण पटेल और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मलिक वाला आयोग पुणे के भीमा-कोरेगांव क्षेत्र में डॉ. भीमा-कोरेगांव के अनुयायियों और दक्षिणपंथी समूहों के बीच हुई हिंसा की जांच कर रहा है। यह हिंसा उस समय हुई, जब दक्षिणपंथी समूह पेशवाओं पर समुदाय की विजय की 200वीं वर्षगांठ मना रहे थे।

आयोग ने दलित नेता प्रकाश अंबेडकर द्वारा फरवरी में दायर आवेदन पर संज्ञान लिया, जिसमें दावा किया गया कि 2020 में राकांपा प्रमुख शरद पवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकरे को कुछ दस्तावेज़ सौंपे थे।

अंबेडकर ने दावा किया कि इन दस्तावेज़ों में आरोप लगाए गए कि वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस – जो 2018 में भी घटना के समय मुख्यमंत्री थे – और पुणे पुलिस भीमा कोरेगांव घटना के दौरान हुई हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हैं।

इसलिए अंबेडकर ने आयोग से इन दस्तावेज़ों को पेश करने और ज़रूरत पड़ने पर पवार को इस मामले में आयोग के समक्ष गवाही देने के लिए बुलाने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये दस्तावेज़ घटना की जांच के लिए महत्वपूर्ण हैं और चल रही जांच के एक हिस्से के रूप में इनकी जाँच की जानी चाहिए।

आयोग ने कहा कि उसने ठाकरे को इन दस्तावेज़ों को पेश करने के लिए इसी मुद्दे पर दो अलग-अलग मौकों पर नोटिस जारी किए। आयोग ने यह भी कहा कि नोटिस तामील होने के बावजूद, ठाकरे याचिका का जवाब देने में विफल रहे।

आयोग ने नोटिस में कहा,

"चूंकि, मिस्टर अंबेडकर ने अपने वकील के माध्यम से आपके विरुद्ध ज़मानती वारंट जारी करने के लिए आवेदन दायर किया ताकि उक्त दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने के लिए आपकी उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके और आयोग आपको नोटिस जारी करके कारण बताने के लिए बाध्य है कि उक्त आवेदन को क्यों न स्वीकार किया जाए। इसलिए आपको निर्देश दिया जाता है कि आप 2 दिसंबर, 2025 को प्रातः 11 बजे व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से उपस्थित हों और कारण बताएं कि उक्त आवेदन को क्यों न स्वीकार किया जाए।"

आयोग ने स्पष्ट किया कि यदि आप इस कारण बताओ नोटिस का पालन करने में विफल रहते हैं तो आपके विरुद्ध कानून द्वारा अनुमत आगे की कार्रवाई की जाएगी।

यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि भीमा-कोरेगांव आयोग का गठन 2018 में ही हिंसा के बारे में तथ्य-जांच करने और भविष्य में ऐसी हिंसा से बचने के लिए सिफारिशें देने के कार्य के साथ किया गया। पिछले सात वर्षों से आयोग को कई बार सेवा विस्तार मिल चुका है। पिछली बार आयोग को 31 अक्टूबर तक का समय दिया गया, लेकिन अब फिर से 1 मार्च, 2026 तक का समय दिया गया।

आयोग वर्तमान में इस मामले में अंतिम बहस सुन रहा है और 2026 में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की संभावना है।

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