'पूरी तरह गलत': गुजरात हाईकोर्ट ने सभी धार्मिक समुदायों के लिए अंत्येष्टि भूमि की मांग संबंधी 'दूसरी' जनहित याचिका खारिज की, याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया
गुजरात हाईकोर्ट ने आज एक जनहित याचिका को खारिज किया, जिसमें राज्य में विभिन्न धार्मिक समुदायों के मृतकों की अंत्येष्टि के लिए उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता ने पहले भी ऐसी ही राहत के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी और बाद में उसे वापस के रूप में खारिज कर दिया गया था। जिसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी मायी ने कहा,
"याचिकाकर्ता की ओर से उसी राहत के लिए दायर की गई पूरी तरह से गलत धारणा पर आधारित यह दूसरी जनहित याचिका है। इसी के लिए पहले एक जनहित याचिका दायर की गई थी और उसे वापस मानकर खारिज कर दिया गया था और याचिकाकर्ता को दूसरी जनहित याचिका दायर करने की कोई स्वतंत्रता नहीं दी गई थी।"
कोर्ट ने आरटीआई दायर करके नई जानकारी हासिल करने और उसके बाद कोर्ट के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता के वकील पीठ के इस सवाल का जवाब नहीं दे सके कि जब पिछली जनहित याचिका को वापस ले लिया गया मानकर खारिज कर दिया गया था तो दूसरी जनहित याचिका कैसे सुनवाई योग्य थी।
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता अदालत की ओर से उठाए गए सवाल के जवाब में कोई प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं दे सके, कि जब याचिकाकर्ता ने खुद बिना किसी स्वतंत्रता के पिछली जनहित याचिका वापस ले ली थी तो उसी कारण के लिए दूसरी जनहित याचिका कैसे दायर की गई? यह संशोधन के मसौदे से स्पष्ट है याचिकाकर्ता एक व्यस्त व्यक्ति है और उन्होंने आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी प्राप्त कीं और उनकी आड़ में उन्हीं मुद्दे को दोबारा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। मौजूदा याचिका दायर करने का याचिकाकर्ता का कृत्य कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है। “
महत्वपूर्ण बात यह है कि सुनवाई के दरमियान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि वह किस समुदाय से हैं।
इसके जवाब में, वकील ने यह कहकर जवाब दिया कि याचिकाकर्ता मुस्लिम समुदाय से है, जिस पर अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वह अपने समुदाय का मुद्दा बहुत अच्छी तरह से उठा सकता है, लेकिन अगर वह अन्य समुदायों का मुद्दा उठाएगा तो कोर्ट उसकी सुनवाई नहीं करेगा।
अदालत के समक्ष, जब वकील ने प्रार्थना की कि उस पर जुर्माना नहीं लगाया जाए, तो अदालत ने कहा कि आदेश इसलिए पारित किया जा रहा है ताकि याचिकाकर्ता उसी राहत के साथ दोबारा अदालत में न आए।
केस साइटेशन: मुजाहिद नफीस बनाम गुजरात राज्य