जहां मोटर दुर्घटना से दावेदार के उत्तराधिकारी को आघात पहुंचा और दुर्घटना और मौत के बीच संबंध है, वहां उत्तराधिकारी मुआवजा पाने का हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट
मोटर दुर्घटना दावे से की गई एक अपील में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में वाहन, जिससे दुर्घटना हुई है, के मालिक और बीमाकर्ता के बीच विवाद की स्थिति में, दावेदार(ओं) को बीमित करने के महत्व को रेखांकित किया, जिन्होंने वह मुआवजा पाया, जिसके वे हकदार थे।
जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजीत सिंह की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि दावेदार के उत्तराधिकारी, एक बार उत्तराधिकारी के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करने के बाद, मूल दावेदार के कारण मुआवजे का दावा करने के हकदार होंगे।
सुरपाल सिंह लधुभा गोहिल बनाम रालियतबहन मोहनभाई सविला पर भरोसा करते हुए पीठ ने कहा, "तथ्यों से पता चलता है कि दावेदार निरंतर डॉक्टरों से उपचार कराता रहा... इसलिए यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि दुर्घटना से, दोनों, दावेदार और उसके उत्तराधिकारियों को आघात पहुंचा। दुर्घटनाग्रस्त की मृत्यु और दुर्घटना से हुई चोट के बीच स्पष्ट संबंध है। इस आशय के पर्याप्त सबूत हैं कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के कारण लगी चोटों के कारण हुए तब्दीलियों के कारण हुई, जो यह दर्शाता है कि चोटें मौत का मूल कारण थीं। इसलिए, उत्तराधिकारी मुआवजे के हकदार हैं। "
मामला
फरवरी 2005 में हुई एक मोटर दुर्घटना के बाद मूल दावेदार, सितंबर में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के पास गया, जिसके बाद 2007 में वाहन मालिक को सम्मन जारी किया गया। (हालांकि बाद में यह विवादित रहा)।
2008 में स्थगन के अनुरोध के बाद, 2009 में बीमा कंपनी ने एक जवाब दायर किया, जिसमें देयता से इनकार किया गया।
2010 में, बीमा कंपनी को कार्यवाही को चुनौती देने की अनुमति दी गई। इसके बाद, ट्रिब्यूनल ने दावेदार के पक्ष में आदेश पारित किया। चूंकि मालिक खुद पेश नहीं हुआ, ट्रिब्यूनल ने निष्कर्ष निकाला कि दुर्घटना की तारीख पर वाहन का बीमा नहीं किया जा सका था। इसके बाद, दावेदार ने 2011 में मालिक के खिलाफ निष्पादन की कार्यवाही की। नोटिस जारी किया गया और उस पर जवाब नहीं आया।
दो साल बाद, जब ट्रिब्यूनल ने उसके खिलाफ कुर्की वारंट जारी किया तो मालिक पेश हुआ और ट्रिब्यूनल के आदेश को इकतरफा चुनौती दी। उसे सीपीसी, नियम 13, आदेश 9 तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि उसे कभी भी कोई सम्मन / नोटिस नहीं भेजा गया, और बाद में कार्यवाही का पता चला।
उसने कहा कि प्रतिवादी संख्या दो (बीमा कंपनी) ने उसके वाहन का बीमा किया है, जो आदेश को संतुष्ट करने के लिए उत्तरदायी होगा।
इसके बाद ट्रिब्यूनल ने आदेश पर रोक लगा दी और इसके बाद कोई कदम नहीं उठाया गया। दावेदार की कार्यवाही लंबित होने के दरमियान ही मृत्यु हो गई और उनके उत्तराधिकारियों ने तर्क दिया कि उनकी मृत्यु दुर्घटना में लगी चोटों के कारण हुई। आदेश को मूल दावेदार के निधन के आधार पर रद्द कर दिया गया।
कोर्ट ने क्या कहा
हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि वाहन मालिक और बीमा कंपनी के बीच विवाद, जिसे आपस में तय किया गया था, के साथ आदेश को आंशिक रूप से रद्द किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि दावेदारों को उचित मुआवजे की अनुमति दी जानी चाहिए।
इसलिए, दावेदार के उत्तराधिकारियों को 24 लाख रुपए मुआवाजा देने को स्वीकृति दी गई, साथ ही कोर्ट ने कहा कि मुआवजे के साथ 7.5% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी दिया जाए, जो दावा फाइल करने की तारीख से मुआवजा जमा करने की तारीख तक देय होगा।
कोर्ट ने कहा, "राज्य में न्यायाधिकरण न्यायालय के निर्देश का पालन करेंगे क्योंकि इसमें उल्लेख किया गया है कि जहां तक संवितरण का संबंध है, उसे वादी की स्थिति और मामले के लंबित होने पर ध्यान देना चाहिए ... वही प्रत्येक मामले के तथ्यों पर लागू होना चाहिए। "
बेंच ने मामले में पेश हुए वकील की सहायता के लिए आभार व्यक्त किया।
राज्य में प्राधिकरण को संदेश
खंडपीठ ने राज्य में ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया कि "इस न्यायालय के निर्देश का पालन करें क्योंकि जहां क्योंकि इसमें उल्लेख किया गया है कि जहां तक संवितरण का संबंध है, उसे वादी की स्थिति और मामले के लंबित होने पर गौर करना चाहिए और एवी पद्मा के फैसले को आंख बंद करके लागू नहीं करना चाहिए )। प्रत्येक मामले के तथ्यों को देखते हुए इसे लागू किया जाना चाहिए। इस निर्णय की एक प्रति माननीय चीफ जस्टिस के अनुमोदन के बाद रजिस्ट्रार जनरल द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण को दी की जानी चाहिए।"
मामला: (मृत) सतीश चंद शर्मा और तीन अन्य बनाम मनोज और एक अन्य
वकील: अपीलार्थी के लिए एडवोकेट अभिषेक और उमेश कुमार सिंह, प्रतिवादी के लिए एडवोकेट निशांत मेहरोत्रा।
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें