जब चेक पर किए सिग्नेचर को स्वीकार कर लिया गया है तो हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की नियुक्ति का सवाल ही नहीं उठता: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के इस विचार को बरकरार रखा कि जब किसी प्रश्न में शामिल चेक पर हस्ताक्षर को विशेष रूप से अस्वीकार नहीं किया गया है तो प्रश्न में चेक पर हैंड राइटिंग की तुलना करने के लिए हस्तलेखन विशेषज्ञ की नियुक्ति को कोई प्रश्न नहीं है।
जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की खंडपीठ इन्हीं टिप्पणियों के साथ सुधीर कुमार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, सोहना, गुरुग्राम के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने निचली चेक पर राइटिंग के संबंध में अदालत से एक हस्त-लेखन विशेषज्ञ की नियुक्ति के बारे में एक विशेषज्ञ राय प्राप्त करने की मांग की थी।
मामला
वर्तमान मामले में, प्रतिवादी-शिकायतकर्ता ने यह आरोप आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता ने अपनी देनदारी के एवज में अक्टूबर 2016 में 5,00,000/- रुपये का चेक जारी किया था, हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उसने कभी उक्त चेक जारी नहीं किया और न ही उस पर कोई दायित्व था।
याचिकाकर्ता का मामला था कि याचिकाकर्ता के पति और प्रतिवादी एक साथ व्यापार कर रहे थे और उक्त प्रासंगिक अवधि में याचिकाकर्ता ने पारस्परिक लेनदेन और व्यवसाय की सुरक्षा के रूप में प्रतिवादी को चेक दिया था।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा था कि विचाराधीन चेक पर याचिकाकर्ता ने हस्ताक्षर नहीं किया था। उसने एक ब्लैंक चेक दिया था। उस पर कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य कोई ऋण नहीं था। याचिकाकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बचाव के साक्ष्य के स्तर पर एक हस्तलेख विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए एक आवेदन दायर किया।
जब प्रश्नाधीन चेक पर हस्ताक्षर करने से विशेष रूप से इनकार नहीं किया गया था तो प्रश्नाधीन चेक पर हस्तलेखन की तुलना करने के लिए हस्तलेखन विशेषज्ञ की नियुक्ति का कोई प्रश्न ही नहीं था।
इस विचार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, गुरुग्राम ने भी पुनरीक्षण में सही ठहराया था। दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता हाईकोर्ट में गया था।
टिप्पणी
हाईकोर्ट की निर्णायक राय थी कि जब याचिकाकर्ता ने पहले से ही विचाराधीन चेक पर अपने हस्ताक्षर स्वीकार कर लिए थे तो बाद के मुद्दे की कि चेक किसने भरा की जांच अंतिम निर्णय के समय की जा सकती है और मौजूदा चरण में एक विशेषज्ञ को नियुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है
इसे ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि आक्षेपित आदेश किसी भी अवैधता, अनियमितता, विकृति से ग्रस्त नहीं हैं, या मौजूदा मामले के तथ्यों में हस्त-लेखन विशेषज्ञ द्वारा जांच नहीं किए जाने से न्याय की विफलता के परिणाम रूप में नहीं है।
केस शीर्षक - सुधीर कुमार बनाम पदम सिंह