जब कोई पुरुष एक ऐसी महिला से शादी करता है जिसके बारे में जानता है कि उसका पहले पति से कानूनी रूप से तलाक नहीं हुआ है, तो 125 की कार्यवाही में शादी के अवैध होने की दलील नहीं दे सकताः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि एक पुरुष, जो एक महिला से बारे में पूरी तरह से जानता था कि उसकी पूर्व की शादी वैध तलाक के जरिए समाप्त नहीं हुई है, उसे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण की कार्यवाही में विवाह के अवैध होने की दलील देने से रोक दिया जाता है।
न्यायमूर्ति राजेंद्र चंद्र सिंह सामंत की एकल पीठ ने एक फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ दायर एक रिविजन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। फैमिली कोर्ट ने आवेदक-पत्नी को इस आधार पर भरण पोषण भत्ता देने से इनकार कर दिया था कि उसने पहले पति से वैध तलाक नहीं लिया,इसलिए वह प्रतिवादी (दूसरे पति) की कानूनी रूप से पत्नी नहीं है।
मिसाल/पूर्व के निर्णय
एकल न्यायाधीश ने मोतीम बाई बोरकर बनाम अर्जुन सिंह बोरकर, 2017 (2) सीजीएलजे 330 के मामले का उल्लेख किया, जिसमें याचिकाकर्ता पत्नी का यह तर्क था कि उसने अपने पहले पति से आपसी सहमति से रिवाज के अनुसार तलाक ले लिया था।
हाईकोर्ट की एक समन्वय खंडपीठ ने कहा था कि भले ही पति के साथ याचिकाकर्ता का तलाक पूरी तरह से कानून के अनुसार नहीं हुआ था, लेकिन वह और प्रतिवादी कुछ समय के लिए पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहे थे, इसलिए, इस तरह के संबंध को सीआरपीसी की धारा 125 के प्रयोजनों के तहत मान्य माना जाता है।
कोर्ट ने कहा कि जब दूसरे पति ने याचिकाकर्ता से विवाह किया तो वह पूरी तरह से यह जानता था कि उसकी पूर्व की शादी वैध तलाक से समाप्त नहीं हुई है, इसलिए उसे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत यह दलील देने से रोक दिया जाता है कि दूसरी शादी अमान्य है।
कोर्ट का निष्कर्ष
तत्काल मामले में, एकल न्यायाधीश ने यह कहा कि आवेदक के पिछले इतिहास के प्रकाश में प्रतिवादी के साथ आवेदक का विवाह होने के बाद, प्रतिवादी विवाह की अमान्यता के बारे में कोई दलील नहीं दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि ''कोई व्यक्ति एक ही समय में किसी बात का समर्थन और निंदा नहीं कर सकता है।''
भरण पोषण भत्ते के भुगतान करने की क्षमता के पहलू पर आते हुए, न्यायाधीश ने नोट किया कि प्रतिवादी की आवेदक को भरण पोषण देने की क्षमता है या नहीं,इस संबंध में रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं रखे गए थे।
हालांकि, कोर्ट ने उल्लेख किया कि प्रतिवादी एक सक्षम व्यक्ति है, जो अपनी आजीविका कमाने और अपनी पत्नी को भरण पोषण देने में सक्षम है।
आदेश में कहा गया है कि,
''कार्यवाही के रिकॉर्ड में साक्ष्य देखने और उन पर विचार करने के बाद ,यह पाया गया कि ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है कि प्रतिवादी के पास कुछ रोजगार हो और उसके पास किसी भी स्रोत से कुछ निश्चित वेतन और आय हो। बस ये एक तथ्य है कि प्रतिवादी एक सक्षम व्यक्ति है जो आजीविका अर्जित कर सकता है और आवेदक को भरण पोषण का भुगतान कर सकता है। इसलिए, इस आधार पर आवेदक को दिए जाने वाले भरण पोषण की राशि को तय किया जा सकता है।''
पृष्ठभूमि
इस मामले में आवेदक की शादी पहले एक राजेंद्र से हुई थी। आवेदक का कहना था कि उसने राजेंद्र से एक प्रथागत तलाक ले लिया था और उसके बाद प्रतिवादी से विवाह कर लिया था।
फैमिली कोर्ट, बिलासपुर ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए उसकी तरफ से दायर आवेदन को खारिज कर दिया था और कहा था कि प्रतिवादी के साथ आवेदक का विवाह 2015 में हुआ था, लेकिन वह कानूनी रूप से प्रतिवादी की पत्नी नहीं है।
रिविजन में, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई है क्योंकि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि आवेदक का पिछला विवाह विद्यमान था और उस विवाह को किसी न्यायालय द्वारा भंग नहीं किया गया था।
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के प्रयोजनों के लिए, यह आवश्यक है कि आवेदक कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होनी चाहिए। इसलिए, आवेदक इस मानदंड को पूरा नहीं करता है और भरण पोषण का अनुदान पाने के लिए हकदार नहीं है।
केस का शीर्षकः तेरस डोंगरे बनाम अविनाश डोंगरे
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