गार्जियनशिप मामलों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि: दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चे को "बेहतर" स्कूल में ले जाने की पिता की याचिका खारिज की

Update: 2023-11-30 07:48 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चे को "बेहतर" स्कूल में ट्रांसफर करने के लिए अपने बच्चे की मां को निर्देश देने की मांग करने वाली पिता की याचिका में कहा कि संरक्षकता के मामलों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।

जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि बच्चा अपनी मां के साथ पीतमपुरा में रह रहा है और पिता द्वारा सुझाया गया स्कूल द्वारका (20 किलोमीटर दूर) में है।

अदालत ने कहा,

"अपीलकर्ता द्वारा मांगा गया कोई भी आदेश उस नाबालिग बच्चे की असुविधा के लिए होगा, जिसकी उम्र लगभग 7 वर्ष है, उसे मंजूरी नहीं दी जा सकती।"

अपीलकर्ता-पिता ने फैमिली कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताते हुए अपील दायर की थी, जिसके तहत प्रतिवादी (बच्चे की मां) को बच्चे को द्वारका के स्कूल में भेजने का निर्देश देने का उनका आवेदन खारिज कर दिया था।

फ़ैमिली कोर्ट ने अपना आदेश पारित करते हुए कहा कि हालांकि पिता द्वारा सुझाया गया स्कूल थोड़ा बेहतर है, लेकिन बच्चा अपने वर्तमान स्कूल में घुल-मिल गया है। उसे वापस द्वारका स्कूल में ट्रांसफर करना उसके सीखने के माहौल के लिए हानिकारक होगा।

उल्लेखनीय है कि बच्चे की मां उसके वर्तमान स्कूल में कार्यरत है। इस प्रकार, बच्चे को "मां के साथ जाने और आने की सुविधा" है और वह हर समय उसकी निगरानी में है।

फ़ैमिली कोर्ट ने कहा था,

"मौजूदा स्कूल बच्चे की ज़रूरतों के अनुकूल है, क्योंकि उसकी मां हमेशा उसके साथ मौजूद रहती है, इसलिए इस स्तर पर स्कूल बदलना बच्चे के हित और कल्याण में नहीं होगा।"

हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने प्रस्तुत किया कि वह पीतमपुरा और द्वारका के बीच बच्चे के लिए निजी परिवहन की व्यवस्था करने के लिए तैयार है।

प्रतिवादी-मां ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अपीलकर्ता द्वारा सुझाए गए स्कूल की ब्रांच रोहिणी में है और यदि अपीलकर्ता का इरादा बच्चे को सुझाए गए स्कूल में भेजने का है तो वह रोहिणी ब्रांच में बच्चे के एडमिशन की व्यवस्था कर सकता है।

इस संबंध में अपीलकर्ता ने उत्तर दिया कि उसे यकीन नहीं है कि वह सुझाए गए स्कूल की रोहिणी ब्रांच में बच्चे के लिए एडमिशन की व्यवस्था कर पाएगा या नहीं।

इस पृष्ठभूमि में अदालत को फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं मिला।

अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट प्रीति सिंह और सुंकलान पोरवाल उपस्थित हुए। प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट निखिल रस्तोगी उपस्थित हुए।

केस टाइटल: वर्मीत सिंह तनेजा बनाम जसमीत कौर, MAT.APP.(F.C.) 346/2023

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