जब तक हुबली बार एसोसिएशन 15 फरवरी के अपने प्रस्ताव को वापस नहीं ले लेता, हम याचिका का निपटारा नहीं कर सकते : कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2020-03-08 06:15 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हुबली बार एसोसिएशन जब तक 15 फ़रवरी के अपने प्रस्ताव को वापस नहीं ले लेता, वह 24 वकीलों की याचिका का निपटारा नहीं करेगा।

इस प्रस्ताव में कहा गया था कि उसका कोई सदस्य उन तीन कश्मीरी छात्रों की पैरवी नहीं करेगा, जिनके ख़िलाफ़ देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। इन लोगों पर आरोप है कि इन्होंने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के समर्थन में वीडियो डाला था।

इससे पहले हुई सुनवाई में संघ के पदाधिकारियों ने अदालत के समक्ष पेश हुए और एक संशोधित प्रस्ताव पेश किया। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय ओका के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने पदाधिकारियों को एक प्रस्ताव पास कर 15 फ़रवरी के प्रस्ताव को वापस लेने को कहा था।

पदाधिकारियों ने तब मौखिक रूप से अदालत को सूचित किया था कि वे ऐसा ही करेंगे और इस बात को आदेश में शामिल किया गया था। आज यह संशोधित प्रस्ताव पेश किया जाना था पर ऐसा नहीं किया गया।

इस बार पीठ ने कहा,

"यह स्पष्ट नहीं है कि बार एसोसिएशन ने पास किए गए प्रस्ताव को रद्द कर दिया है या उसे वापस ले लिया है, इसलिए इस याचिका को निपटाया नहीं जा सकता। इस याचिका पर अब 17 मार्च को सुनवाई होगी ताकि एसोसिएशन को संशोधित प्रस्ताव पेश करने का मौक़ा मिल सके।"

एडवोकेट बीटी वेंकटेश एवं अन्य ने कहा, "सभी याचिकाकर्ता कर्नाटक राज्य में प्रैक्टिस करनेवाले वक़ील हैं। उन्होंने इस याचिका को एक जनहित याचिका के रूप में दाख़िल किया है क्योंकि मामला आरोपी के क़ानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार और क़ानूनी पेशे की गरिमा का है। इसमें जिस मुद्दे को उठाया गया है वह जनहित का है क़ानूनी प्रतिनिधित्व चाहनेवाले सभी लोगों के मौलिक अधिकार का है।

इसके बाद हाईकोर्ट ने पुलिस आयुक्त से उन एडवोकेटों को सुरक्षा देने को कहा जो छात्रों के लिए ज़मानत का आवेदन देना चाहते हैं। हुबली अदालत इस बारे में कोई आदेश अब 9 मार्च को पास करेगा। 

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