''नौकरशाही और राजनीतिक नेताओं के लिए विफलताओं और अक्षमताओं को स्वीकार करना बहुत मुश्किल '': दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-05-19 12:15 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा है कि नौकरशाही और आज के राजनीतिक नेताओं के लिए विफलताओं और उनकी अक्षमता को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है और यह उनकी रगों में नहीं है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ दिल्ली ज्यूडिशियल मेंबर एसोसिएशन की तरफ से दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी। इस आवेदन में यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी कि न्यायिक सदस्यों और उनके परिवार को जिलों के भीतर एक केंद्रीकृत तंत्र स्थापित करके और प्रत्येक जिले में अस्पताल बनाकर पर्याप्त कोविड केयर सुविधाएं प्रदान की जाएं।

पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि,

''नौकरशाही और राजनीतिक नेताओं के लिए विफलता को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। अपनी अक्षमता को भी वे स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत क्या है, हम सब देख रहे हैं।''

एसोसिएशन की ओर से पेश अधिवक्ता दयान कृष्णन ने अदालत को अवगत कराया कि जमीनी स्तर पर ऐसे न्यायिक अधिकारियों को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं ''आंखे खोलने''' वाली हैं और कुछ जिलों में अस्पताल निर्धारित किए गए हैं, जबकि अन्य में नहीं हैं।

कृष्णन ने कोर्ट को बताया कि,

''हमने हर कोर्ट के अनुसार बताया है,जो यह दर्शाता है कि स्थापित की गई अधिकांश कोविड केयर सुविधाएं घर पर की जा सकने वाली देखभाल के समान हैं। नोडल अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं। मैं रोहिणी का उदाहरण दूंगा। डीजे ने डीएम से संपर्क किया और डीएम ने कहा कि मेरे अधीन सिर्फ रोहिणी है और मैं दिल्ली में सभी स्थानों की सुविधाएं को नहीं देख सकता हूं। एक केंद्रीकृत तंत्र बनाया जा सकता है ताकि ऐसे अधिकारी आपस में समन्वय कर सकें और कुछ केंद्रीकृत सुविधाएं हो ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर जिले को अस्पताल से जोड़ा जा सके।''

इसकी पुष्टि करते हुए एडवोकेट शोभा गुप्ता ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों ने खुद से कोविड केयर सुविधाओं की स्थापना के लिए लगभग 10,000-10,000 रुपये जमा किए थे और दिल्ली सरकार द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है।

इसे देखते हुए, जीएनसीटीडी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने आश्वासन दिया कि राज्य इस संबंध में पर्याप्त कदम उठाएगा और मध्यम से गंभीर श्रेणी के अंतर्गत आने वाले ऐसे जरूरतमंद अधिकारियों का विवरण राज्य के सामने रखा जाना चाहिए ताकि पर्याप्त कदम उठाए जा सकें।

इस पर न्यायमूर्ति सांघी ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा किः

''आज हम ऑक्सीजन बेड आदि की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन हम यह सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं कि हमारे सामने ऐसी समस्या फिर नहीं आएगी। हमें सबसे बुरे के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें एक सिस्टम प्लान बनाना चाहिए ताकि फिर से कोई संकट पैदा हो जाए, तो हम उससे निपटने में सक्षम हों। लोग अपने कार्यालयों में जा रहे हैं, वे जमीनी धरातल पर काम कर रहे हैं, खुद को खतरे में ड़ाल रहे हैं। ऐसे में कम से कम राज्य उन्हें यह आवश्वासन तो प्रदान कर सकता है कि यदि वे संक्रमित होते हैं, तो उनकी देखभाल की जाएगी। अन्यथा वे काम करना बंद कर देंगे।''

यह देखते हुए कि न्यायिक अधिकारी अन्य फ्रन्ट लाइन वर्कर जैसे डॉक्टर, पुलिस अधिकारी आदि के समान हैं, बेंच ने यह भी कहा किः

''हाईकोर्ट में फाइलें डिजिटल हैं और यहां बुनियादी ढांचा अलग है और बहुत बेहतर है,लेकिन यह जिला न्यायालयों में नहीं है। फाइलों को फिजिकल तौर पर लाना-ले जाना वांछनीय नहीं हो सकता है। कुछ न्यायाधीशों को आवश्यकता के चलते अदालतों में आना पड़ता है। ऐसे में यह कहना कि उनके काम या जिम्मेदारी को आवश्यक सेवाओं के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, यह सही नहीं है। वे भी एक आवश्यक कर्तव्य निभा रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे न्यायाधीशों के पद पर काम कर रहे हैं, बल्कि उनके कर्तव्य की प्रकृति के कारण,जो वे समाज की सेवा के लिए कर रहे हैं।''

इस पर, मेहरा ने कहा कि ''हमें इस तथ्य को स्वीकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए कि इन्हें फ्रन्ट लाइन वर्कर के रूप में घोषित किया जाना है। यदि टीकाकरण लाया जाता है, तो तीसरी लहर को रोका जा सकता है। यदि हम टीकाकरण के मामले में इस तरह शांत बैठते हैं, तो भगवान जाने कितनी लहरें आएंगी।''

सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया गया कि मामले में आगे कदम उठाने के लिए ज्यूडिशियल एसोसिएशन के सदस्यों और दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के बीच बैठक बुलाई जा सकती है।

इसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने याचिका में नोटिस जारी किया और मामले की स्टे्टस रिपोर्ट दायर करने के लिए इस मामले की सुनवाई अगले बुधवार यानी 27 मई के लिए पोस्ट कर दी है।

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