पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ यूपी पुलिस की एफआईआर : एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी किया
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने वाराणसी पुलिस द्वारा वेबसाइट "स्क्रॉल" की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर चिंता व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया है।
वेबसाइट स्क्रॉल डॉट इन की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई है। शर्मा ने लॉकडाउन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक गांव की हालत पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
रामनगर पुलिस थाने में एफआईआर दज कराने वाली माला देवी ने आरोप लगाया है कि सुप्रिया शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में उनके बयान को गलत तरीके से प्रकाशित किया है और झूठे दावे किए हैं।
पुलिस ने शर्मा के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के संबंधित प्रावधानों के साथ आईपीसी की धारा 501 (ऐसे मामलों का प्रकाशन या उत्कीर्णन, जो मानहानिकारक हों) और धारा 269 (लापरवाही, जिससे खतरनाक बीमारी के संक्रमण को फैलाने की आशंका हो) के तहत मामला दर्ज किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लॉकडाउन के प्रभावों पर आधारित अपनी रिपोर्ट में, जिसका शीर्षक था- प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव में लॉकडाउन के दौरान भूखे रह रहे लोग, सुप्रिया शर्मा ने माला के बयान को प्रकाशित किया था, जो कि कथित रूप से घरेलू कर्मचारी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया था कि माला को लॉकडाउन के दौरान बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा, उन्हें राशन की कमी तक पड़ गई। हालांकि, 13 जून की एफआईआर में माला देवी ने दावा किया है कि वह घरेलू कर्मचारी नहीं हैं और उनकी टिप्पणियों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
गिल्ड ने एफआईआर को "एक अतिशयोक्ति" करार दिया और कहा कि यह मीडिया की स्वतंत्रता को गंभीरता से कम करेगा।
गिल्ड ने कहा कि
"पत्रकारों के खिलाफ कानून के आपराधिक प्रावधानों का उपयोग अब एक घृणित प्रवृत्ति बन गई है, जिसका जीवंत लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। इसे समाप्त करने के साथ-साथ इसका विरोध करने की आवश्यकता है।"
गिल्ड ने स्क्रॉल के संपादकीय रुख पर ध्यान देते हुए बयान जारी किया,
"गिल्ड देश के सभी कानूनों का सम्मान करता है और साथ ही माला देवी के अन्याय के खिलाफ लड़ने के अधिकार का भी सम्मान करता है, लेकिन, यह ऐसे कानूनों के अनुचित दुरुपयोग को भी अनुचित और निंदनीय पाता है। इससे भी बदतर, अधिकारियों द्वारा कानूनों के दुरुपयोग की बढ़ती आवृत्ति है।"