आर्बिट्रल कार्यवाही में प्रति-दावों की राशि को बदलने की मांग करने वाला 'अपेडट आवेदन' 'संशोधन' आवेदन है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि जहां पक्षकार ने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष अपने जवाबी दावों को अपडेटशन/संशोधित करने के लिए आवेदन दायर किया है, मुख्य रूप से जवाबी-दावों की राशि को बदलने का इरादा रखता है, उक्त आवेदन प्रभावी रूप से प्रतिदावों में संशोधन के लिए आवेदन है, भले ही इसे 'अपडेटशन आवेदन' कहा गया हो।
जस्टिस वी. कामेश्वर राव की पीठ मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (एएंडसी एक्ट) की धारा 34 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उसने अपने प्रतिदावों के अपडेटशन/संशोधन की मांग करने वाले पक्षकार के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसे देर से दायर किया गया।
एएंडसी एक्ट की धारा 23(3) के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा कि ट्रिब्यूनल को पुनर्विचार के लिए आवेदन को अस्वीकार करने का अधिकार है, जो वास्तव में प्रतिदावों में संशोधन के लिए है, इस आधार पर कि वही देर से दायर किया गया।
ए&सी एक्ट की धारा 23(3) प्रदान करती है कि जब तक कि पक्षकार द्वारा अन्यथा सहमति न हो, कोई भी पक्ष आर्बिट्रल कार्यवाही के दौरान अपने दावे या बचाव में संशोधन/पूरक कर सकता है, जब तक कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल संशोधन या पूरक होने की अनुमति देने के लिए इसे दायर करने में देरी के संबंध में अनुचित नहीं मानता।
याचिकाकर्ता एनटीपीसी लिमिटेड ने प्रतिवादी नंबर 1 लार्सन एंड टुब्रो (एल एंड टी) और प्रतिवादी नंबर 2 अल्पाइन मेयरेडर बाऊ जीएमबीएच से मिलकर बने संयुक्त उद्यम के साथ समझौते को निष्पादित किया।
समझौते के तहत पक्षकारों के बीच कुछ विवाद उत्पन्न होने के बाद उन्हें आर्बिट्रेशन के लिए भेजा गया। एनटीपीसी ने एल एंड टी, जो आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष दावेदार था, द्वारा दायर किए गए दावों के बयान के खिलाफ अपना बचाव वक्तव्य और प्रति-दावा दायर किया।
इसके बाद, एनटीपीसी ने अपने प्रतिदावों को अपडेटशन/संशोधित करने की अनुमति के लिए आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष आवेदन दायर किया। आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने उक्त आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसे देर से दायर किया गया, जबकि एनटीपीसी को अपडेट दावों के संबंध में नए सिरे से आर्बिट्रेशन शुरू करने की स्वतंत्रता दी गई।
उक्त आदेश के खिलाफ एनटीपीसी ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एएंडसी एक्ट की धारा 34 के तहत याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता एनटीपीसी ने हाईकोर्ट के समक्ष निवेदन किया कि ट्रिब्यूनल ने यह मानने में गलती की कि उसके द्वारा दायर अपडेशन आवेदन वास्तव में प्रति-दावों के संबंध में मूल दलीलों के संशोधन के लिए आवेदन था। एनटीपीसी ने तर्क दिया कि उसने दलील या कार्रवाई के कारण को बदले बिना केवल आवेदन देकर संबंधित प्रति-दावों के अपडेटशन/संशोधन की मांग की।
इसने तर्क दिया कि समय बीतने के साथ प्रति-दावों की राशि में वृद्धि हुई। उक्त अपडेशन प्रकृति में औपचारिक था, जिसने मामले की प्रकृति को नहीं बदला।
याचिका की सुनवाई योग्यता पर विवाद करते हुए प्रतिवादी एल एंड टी ने कहा कि एक्ट की धारा 34 के तहत याचिका केवल 'अवार्ड' के खिलाफ सुनवाई योग्य है, जैसा कि एएंडसी एक्ट की धारा 2(1)(सी) के सपठित धारा 31 (6) के तहत परिभाषित है। चूंकि उक्त आदेश ए&सी एक्ट के तहत न तो 'अवार्ड' था और न ही 'अंतरिम निर्णय', उक्त आदेश के खिलाफ एक्ट की धारा 34 याचिका सुनवाई योग्य नहीं।
ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने माना कि ट्रिब्यूनल ने निष्कर्ष निकाला कि एनटीपीसी द्वारा दिया गया आवेदन वास्तव में प्रति-दावों में संशोधन के लिए था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रतिदावे की राशि और यहां तक कि ऐसी राशि की गणना करने की पद्धति को बदल दिया गया, ट्रिब्यूनल ने देखा। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि एएंडसी एक्ट के तहत प्रदान किए गए दावों/प्रति-दावों को अपडेशन करने की कोई अवधारणा नहीं है। इसलिए एनटीपीसी द्वारा किए जाने वाले परिवर्तनों को आवश्यक रूप से इसके प्रति-दावों के संशोधन के माध्यम से किया जाना है।
इस प्रकार न्यायालय ने एनटीपीसी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि इसका इरादा केवल अपने प्रतिदावों को अपडेशन/संशोधित करना था।
बेंच ने यह कहते हुए कि आवेदन अपडेशन/संशोधन के लिए था, एनटीपीसी मुख्य रूप से अपने प्रति-दावों में संशोधन की मांग कर रहा है।
इसमें कहा गया,
"अपडेशन/संशोधन की मांग करने वाले याचिकाकर्ता का उद्देश्य मुख्य रूप से जवाबी-दावों की मात्रा को बदलना है। उस अर्थ में हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा आवेदन को अपडेशन एप्लिकेशन के रूप में करार दिया गया, संशोधन के लिए प्रभावी था।
ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी में प्रदान की गई "संशोधन" की परिभाषा का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि एनटीपीसी द्वारा मांगे गए अपडेशन/संशोधन का उसके प्रति-दावों में संशोधन का प्रभाव था।
न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
"यह दोहराया जाता है कि ट्रिब्यूनल यह मानने में सही था कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन प्रति-दावों में संशोधन की मांग के लिए है। यदि ऐसा है तो ट्रिब्यूनल दिए गए तथ्यों में अपडेशन/ संशोधन के लिए आवेदन की अनुमति नहीं देने के अपने अधिकार के भीतर है, जो वास्तव में प्रति-दावों के संशोधन के लिए था, इस आधार पर कि यह देर से किया गया।
पीठ ने एनटीपीसी के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि ट्रिब्यूनल ने मुख्य रूप से एएंडसी एक्ट की धारा 23 (3) के संदर्भ में मुख्य रूप से इस आधार पर जवाबी-दावों के अपडेशन/संशोधन की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने देरी और परिणामी पूर्वाग्रह के आधार पर आवेदन को भी खारिज कर दिया, जो संशोधन की अनुमति देने में प्रतिवादी के कारण होगा, यह देखते हुए कि कार्यवाही अंतिम बहस के चरण में थी।
न्यायालय ने आगे कहा कि ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में संशोधन/अपडेशन के लिए आवेदन करने में देरी के बीच अंतर किया, जबकि दावा खुद सीमित है। न्यायालय ने माना कि ट्रिब्यूनल ने केवल इस आधार पर संशोधन का आवेदन खारिज कर दिया कि यह लंबे समय के अंतराल के बाद किया गया। इसके अलावा, संशोधित/अपडेटशन किए जाने वाले प्रति-दावों की योग्यता के संबंध में परिसीमा का मुद्दा ट्रिब्यूनल द्वारा बिल्कुल भी संदर्भित नहीं किया गया।
यह फैसला सुनाया कि चूंकि एनटीपीसी के कथित प्रति-दावों को उसकी योग्यता के आधार पर अंतिम रूप से तय नहीं किया गया, इसलिए आदेश ने एएंडसी एक्ट के तहत अवार्ड या अंतरिम अवार्ड की आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया। इस प्रकार, उक्त आदेश के खिलाफ एक्ट की धारा 34 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
इस तरह कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: एनटीपीसी लिमिटेड बनाम लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड और अन्य।
दिनांक: 27.03.2023
याचिकाकर्ता के वकील: सीनियर एडवोकेट मनिंदर आचार्य, तारकेश्वर नाथ, दीपांशु डुडेजा, ललित मोहन, विराट सहारन और हर्षित सिंह।
प्रतिवादी के वकील: सीनियर एडवोकेट राजीव विरमानी, कीरत सिंह नागरा, कार्तिक यादव, हार्दिक जैन, वरदान वांचू और सुमेधा चड्ढा आर-1 के लिए
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