यूपी शहरी निकाय चुनाव | राज्य सरकार 'ट्रिपल टेस्ट' की औपचारिकताओं को पूरा करेगी, ओबीसी सर्वेक्षण के लिए कमेटी के गठन का फैसला किया
उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरी निकाय चुनावों में पिछड़ी जाति के लिए पर्याप्त आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य "ट्रिपल टेस्ट" औपचारिकता को पूरा करने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने सर्वेक्षण के लिए 5 सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति को 6 महीने की अवधि के लिए गठित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य चुनाव आयोग को ओबीसी आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय चुनावों को तुरंत अधिसूचित करने का निर्देश दिया था। फैसले के बाद राज्य सरकार को पिछड़ा आरक्षण के मुद्दे पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद राज्य सरकार ने समिति के गठन का निर्णय लिया है।
समिति न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह की अध्यक्षता में काम करेगी। पैनल में सदस्य के रूप में सेवानिवृत्त आईएएस चोब सिंह वर्मा, सेवानिवृत्त आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व कानूनी सलाहकार संतोष कुमार विश्वकर्मा और पूर्व अतिरिक्त कानूनी सलाहकार व अपर जिला न्यायाधीश बृजेश कुमार सोनी को शामिल किया गया है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकताओं को पूरा नहीं करती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओबीसी कोटा के बिना चुनावों को तुरंत अधिसूचित करने का निर्देश दिया था, हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आधिकारिक बयान के अनुसार सरकार तब तक चुनावों को अधिसूचित/ संचालित नहीं करेगी, जब तक कि ओबीसी को कोटा प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त नहीं हो जाता।
उल्लेखनीय है कि किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ट्रिपल टेस्ट औपचारिकता को अनिवार्य किया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से पहले ट्रिपल टेस्ट का पालन किया जाए।
ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकताओं के अनुसार-
(1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की एक समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना;
(2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अतिव्याप्ति का उल्लंघन न हो; और
(3) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटें कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक ना हो।