उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन, जाति परिवर्तन और विवाह के बाद दस्तावेजों में नाम बदलने की अनुमति नहीं देने वाले प्रावधान को रद्द किया

Update: 2023-05-31 13:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम, 1921 के विनियम 40 (ग) को रद्द कर दिया, जिसके तहत किसी व्यक्ति की ओर से शैक्षणिक दस्तावेजों में अपने नाम में, उपनाम अपनाकर, या जाति या धर्म का खुलासा कर या सम्मानजनक शब्दों या टाइटल शामिल कर, बदलाव का अनुरोध किया गया हो, को स्वीकार करने पर रोक लगा दी गई थी।

प्रावधान में यह भी कहा गया था कि धर्म परिवर्तन या जाति परिवर्तन के बाद या विवाह के बाद नाम परिवर्तन नाम परिवर्तन के आवेदनों पर विचार नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस अजय भनोट की पीठ ने विनयम में शामिल प्रतिबंधों को असंगत, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंधों के परीक्षण में विफल पाया।

कोर्ट ने कहा, "विनियमन 40 (ग) में शामिल प्रतिबंध मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 में निहित नाम चुनने और बदलने के मौलिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।"

उक्त प्रावधान में कहा गया है,

"(ग) परीक्षार्थियों द्वारा नाम के पहले या बाद में उपनाम जोड़ने धर्म अथवा जाति सूचक शब्दों के जोड़ने अथवा सम्मानजनक शब्द या उपाधि जोड़ने जैसे किसी भी प्रकार के आवेदन पत्रों को स्वीकार्य नहीं किया जायेगा। इसी प्रकार धर्म अथवा जाति परिवर्तन के आधार पर अथवा विवाहित छात्र / छात्राओं के नाम में भी विवाह के फलस्वरूप नाम परिवर्तित हो जाने पर परिषद द्वारा नाम में परिवर्तन नहीं किया जायेगा।"

समीर राव नामक एक युवक की रिट याचिका को अनुम‌ति देते हुए कोर्ट ने यह आदेश पारित किया। रिट याचिका में यूपी बोर्ड द्वारा हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाण पत्र में नाम बदलने के लिए दिए गए आवेदन को खारिज करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई थी।

अदालत ने यूपी शिक्षा बोर्ड को यह भी निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन को "शाहनवाज" से "मोहम्मद समीर राव" में बदलने और उक्त परिवर्तन को शामिल करते हुए नए हाईस्कूल और इंटरमीडिएट प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति दे।

कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि मानव जीवन और एक व्यक्ति के नाम की अंतरंगता निर्विवाद है, विशिष्ट शब्दों में कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 के आधार पर नाम रखने या बदलने का मौलिक अधिकार प्रत्येक नागरिक में निहित है।

मामला

याचिकाकर्ता का नाम हाईस्कूल परीक्षा प्रमाण पत्र और इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाण पत्र में "शाहनवाज" के रूप में दर्ज किया गया था, जिसे क्रमशः 2013 और 2015 में जारी किया गया था। सितंबर-अक्टूबर 2020 में, उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि उन्होंने अपना नाम "शाहनवाज़" से बदलकर "मोहम्मद समीर राव" कर लिया है।

इसके बाद, उन्होंने वर्ष 2020 में अपने नाम को "शाहनवाज" से "मोहम्मद समीर राव" में बदलने के लिए प्रतिवादी बोर्ड में आवेदन किया। उक्त आवेदन को विनियम 40 (क) और विनियम 40 (ग) उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921, के आधार पर आक्षेपित आदेश द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था।

विनियम 40 (क) में यह विचार किया गया है कि नाम परिवर्तन के लिए आवेदन उस वर्ष की 16 मार्च की 31 तारीख से केवल तीन वर्षों के भीतर दायर किया जा सकता है, जब उम्मीदवार परीक्षा में उपस्थित हुआ था, विनियम 40 (ग) ऐसे नाम परिवर्तन पर रोक लगाता है, जब आवेदक के धर्म का खुलासा किया गया है।

जब याचिकाकर्ता ने अपने नाम परिवर्तन के आवेदन को खारिज करने के यूपी बोर्ड के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, तो न्यायालय ने अन्य बातों के साथ, यह देखा कि कई बार नाम परिवर्तन जाति या धर्म परिवर्तन के अनुसार होता है और इसलिए, किसी व्यक्ति के शैक्षिक रिकॉर्ड में इस आधार पर नाम बदलने से इनकार करना कि उसका नाम उसके धर्म का खुलासा करता है (जैसा कि विनियम 40 (ग) के तहत विचार किया गया है), संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत अपनी पसंद के धर्म को मानने और अभ्यास करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने कहा कि शादी के बाद नाम बदलने पर रोक व्यक्ति के अपनी पहचान व्यक्त करने के मौलिक अधिकार में भी हस्तक्षेप करेगी।

केस टाइटलः मोहम्मद समीर राव बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [WRIT - C No. - 3671 of 2022]

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 170

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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