यूपी आबकारी अधिनियम मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी भाजपा विधायक के खिलाफ 'अभियोजन से वापसी' के लिए दायर आवेदन की अनुमति दी

Update: 2023-02-17 12:29 GMT

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी आबकारी अधिनियम के तहत यूपी बीजेपी विधायक प्रेम नारायण पांडेय के खिलाफ दर्ज एक मामले के संबंध में लोक अभियोजक की ओर से 'अभियोजन से वापसी' (जैसा कि धारा 321 सीआरपीसी के तहत प्रदान किया गया है) के आवेदन की अनुमति दी है।

साथ ही कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए), गोंडा की ओर से नवंबर 2020 में पारित आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत सरकारी वकील की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि आवेदन को खारिज करते समय, संबंधित न्यायालय ने नोट किया था कि किसी भी दस्तावेजी सामग्री के जर‌िए यह प्रदर्शित नहीं किया गया था कि इस तरह की वापसी (अभियोजन पक्ष से) सार्वजनिक न्याय के हित में थी।

यह देखते हुए कि नवंबर 2020 का आदेश स्पष्ट अवैधता और विकृति से ग्रस्त है, ज‌स्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने इसे अलग रखा और सीआरपीसी की धारा 321 के तहत पीपी द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया।

मामला

विधायक पांडेय को 2003 में यूपी आबकारी अधिनियम की धारा 60 व 72 का उल्लंघन करते हुए पाया गया था। उनके पास से शराब बरामद की गई ‌थी। इसके बाद, संबंधित अदालत के समक्ष उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी।

नवंबर 2019 में धारा 321 सीआरपीसी के तहत एक सहायक लोक अभियोजक (आपराधिक) की ओर से संबंधित विचारण न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया। इसे खारिज किए जाने के बाद, पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने, लोक अभियोजक के आवेदन की अनुमति देने आदि सहित विभिन्न प्रार्थनाओं की मांग करते हुए पांडेय ने हाईकोर्ट का रुख किया।

अदालत के समक्ष, पांडेय के वकील ने तर्क दिया कि जिस मामले को वापस लेने की मांग की गई है, उसकी प्रकृति समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित नहीं करेगी, इस प्रकार, इस तरह की वापसी सार्वजनिक न्याय के खिलाफ नहीं होगी।

शीर्ष अदालत के फैसलों पर भरोसा करते हुए, यह भी प्रस्तुत किया गया कि लोक अभियोजक न केवल साक्ष्य की कमी के आधार पर ही नहीं बल्कि अन्य प्रासंगिक आधारों और सार्वजनिक न्याय, सार्वजनिक व्यवस्था और शांति को बढ़ाने के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए अभियोजन से वापसी कर सकता है।

दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ताओं ने यह भी प्रस्तुत किया कि ट्रायल कोर्ट ने यह संकेत देकर आक्षेपित आदेश पारित करने में गलती की है कि अभियोजन पक्ष वर्तमान आवेदक के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए अदालत को समझाने के लिए कोई दस्तावेज/सामग्री दायर नहीं कर सका।

कोर्ट को इस तथ्य से भी अवगत कराया गया था कि ट्रायल कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में याचिकाकर्ता के डिस्चार्ज आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार दायर किया गया था।

इस पृष्ठभूमि में दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि यदि लोक अभियोजक यह दिखाने में सक्षम है कि वह आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सकता है तो अभियोजन पक्ष से वापसी के लिए आवेदन वैध रूप से दायर किया जा सकता है।

इसके अलावा, इस बात पर जोर दिया गया है कि अभियोजन से हटने की अनुमति देते समय अंतिम मार्गदर्शक विचार हमेशा न्याय प्रशासन के हित में होना चाहिए। कोर्ट ने केरल राज्य बनाम के. अजित और अन्य एलएल 2021 एससी 328 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया।

न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में दोष था और इसे रद्द करने का आदेश दिया।

केस टाइटलः प्रेम नारायण पांडेय बनाम स्टेट ऑफ यूपी, प्रधान सचिव, गृह के माध्यम से, लखनऊ और अन्य। Application U/S 482 No - 666 of 2023]

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 65

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