UP Bar Council Elections | हाईकोर्ट ने अवमानना के आरोपों का सामना कर रहे वकील के नॉमिनेशन के खिलाफ याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में आगामी उत्तर प्रदेश बार काउंसिल चुनावों के लिए एडवोकेट नरेश चंद्र त्रिपाठी के नॉमिनेशन को चुनौती देने वाली रिट याचिका खारिज की।
जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपामा चतुर्वेदी की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट की सात-जजों की बेंच द्वारा अवमानना के आरोप तय करना सिर्फ एक शुरुआती राय थी और यह कोर्ट की अवमानना अधिनियम के तहत दोषसिद्धि नहीं थी।
संक्षेप में मामला
फखरुद्दीन अली अहमद ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य पद के लिए नरेश चंद्र त्रिपाठी के नॉमिनेशन को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट मनीष सिंह ने तर्क दिया कि त्रिपाठी को सात-जजों की बेंच ने 'दोषी' ठहराया था और इस मामले को सिर्फ सजा देने के सीमित उद्देश्य के लिए एक बेंच गठित करके अवमानना की कार्यवाही दर्ज करने के लिए भेजा गया था।
आपराधिक कानून के सिद्धांतों के साथ तुलना करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि दोषसिद्धि दर्ज की गई, इसलिए इस पद के लिए त्रिपाठी का नॉमिनेशन उचित नहीं था।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की ओर से पेश हुए एडवोकेट अशोक कुमार तिवारी ने तर्क दिया कि अप्रैल, 2023 का आदेश कानपुर सिविल कोर्ट में वकीलों की लगातार हड़ताल के कारण स्वतः संज्ञान लेते हुए शक्तियों का प्रयोग करते हुए पारित किया गया।
उन्होंने कहा कि वकीलों के आचरण के संबंध में बेंच की टिप्पणियां अवमानना का मामला दर्ज करने के लिए एक शुरुआती मामला बनाती हैं।
यह तर्क दिया गया कि अवमानना न्यायशास्त्र में भले ही स्पष्ट रूप से अवमानना देखी गई हो, पीड़ित पक्ष को सुना जाना चाहिए और चूंकि मामला एक डिवीजन बेंच को सौंपा गया, जिसने आरोप तय किए, लेकिन अभी तक अंतिम आदेश पारित नहीं किया, इसलिए मामला अभी भी ट्रायल के चरण में है।
बेंच ने हाईकोर्ट की 7-जजों की बेंच के आदेश को देखा और पाया कि कथित अवमानना करने वालों/वकीलों (एडवोकेट त्रिपाठी सहित) के खिलाफ केवल अवमानना के आरोप तय किए गए।
बेंच ने राय दी कि आरोप खुद कोई फैसला नहीं हैं, क्योंकि चीफ जस्टिस के प्रशासनिक आदेशों के तहत बेंच गठित होने के बाद कथित अवमानना करने वालों को आरोपों का जवाब देने के लिए अपने-अपने स्पष्टीकरण देने थे।
बेंच ने कहा,
"...आपराधिक अवमानना कार्यवाही के मामले में कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया गया, कार्यवाही का चरण केवल ट्रायल के चरण पर ही जारी माना जाएगा। हमारी राय में सिर्फ आरोप तय करना, कोर्ट की अवमानना अधिनियम के तहत दोषसिद्धि नहीं माना जाता है।"
नतीजतन, याचिका को पूरी तरह से गलत पाते हुए उसे खारिज कर दिया गया।
Case title - Fakhruddin Ali Ahmad vs. State Of U.P. And 3 Others