अपंजीकृत पारिवारिक समझौता साक्ष्य में तभी स्वीकार्य होगा जब परिवार के सभी सदस्यों की स्वीकृति के साथ समझौते की पुष्टि हुई हो: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि अचल संपत्तियों को बांटने के लिए पार्टियों के बीच पारिवारिक समझौता परिवार के सभी सदस्यों के बीच होना चाहिए, जो सामान्य नियमों और शर्तों से सहमत हैं, और पंचायत के समक्ष आए मुकदमें की दो पार्टियों के बीच लिखित समझौता स्वीकार्य नहीं होगा, जब तक कि यह एक पंजीकृत दस्तावेज न हो।
जस्टिस सचिन शंकर मखादुम की सिंगल जज बेंच ने कृष्णप्पा और अन्य द्वारा दायर अपील को स्वीकार किया और अपीलीय अदालत के आदेश को रद्द कर दिया।
बेंच ने कहा,
"पारिवारिक समझौते में सहभागिता शामिल है और उस पर सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होना आवश्यक है, और समझौता होने पर एक पावती होनी चाहिए...। एक पारिवारिक समझौता साक्ष्य में स्वीकार्य होगा, बशर्ते कि समझौते की पुष्टि परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से हो, जो बाद की तारीख में समझौते में दिए गए संकल्प का दृढ़ता से समर्थन करते हों, इसके लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।"
अपीलीय अदालत ने संपूर्णता मे वाद का फैसला किया था, और वादी (मूल वादी की पुत्री अश्वत्थामा) को सभी संपत्तियों में हिस्सा दिया था। अपीलीय अदालत ने मौखिक और दस्तावेजी सबूतों का आकलन करने के बाद अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 'पंचायत पालुपट्टी' पर बहुत भरोसा किया।
यह विचार था कि पार्टियों ने समान रूप से संपत्तियों को साझा करने के लिए सौहार्दपूर्ण रूप से संकल्प लिया है और तदनुसार, प्रतिवादी पंचायत पालुपट्टी के तहत आधा हिस्सा देने के लिए सहमत हो गया है।
अपीलीय अदालत ने पोल्टी लक्ष्मी बनाम कृष्णवेनम्मा, AIR 1965 SC 825 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया था कि पालुपट्टी को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
परिणाम
हाईकोर्ट ने माना कि पालुपट्टी "पारिवारिक व्यवस्था" की प्रकृति का नहीं है, क्योंकि परिवार के सभी सदस्य इसमें शामिल नहीं हैं और इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। यह संकेत नहीं करता कि सभी संपत्तियां सामान्य परिवार का हिस्सा हैं।
कोर्ट ने कहा, "एक परिवार व्यवस्था की मुख्य आवश्यकता यह है कि परिवार के सभी सदस्यों को सहमत होना चाहिए और इस प्रकार के समझौते से संकेत मिलना चाहिए कि समझौते में शामिल सभी पार्टियों को अधिकार और स्वामित्व को सभी सदस्यों द्वारा स्वेच्छा से स्वीकार किए गया हो और उसके दस्तावेज के तहत स्वीकार किया गया हो।"
पीठ ने कहा, "पारिवारिक समझौते के लिए एक और आवश्यक शर्त यह है कि समझौते के सभी पक्ष अन्य सदस्यों के अधिकार को मान्यता दें, जैसा कि उन्होंने पहले कहा था, क्रमशः उन्हें आवंटित हिस्से के लिए।"
यह भी माना गया कि यदि पार्टियों ने समझौते का लिखित रूप दिया है और इरादा उस लिखित दस्तोवज का सबूत के रूप में उपयोग करने का है, तब उक्त दस्तावेज के लिए पंजीकरण अधिनियम की धारा 17(1) के तहत पंजीकरण की आवश्यकता होती है।
तदनुसार, पीठ ने अपील की अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और डिक्री को बहाल कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित संपत्ति की केवल दो वस्तुएं संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति थीं और बाकी मदों के लिए मुकदमा खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल: कृष्णप्पा बनाम अश्वथाम्मा
केस संख्या: R.S.A.NO.87 OF 2010
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 362