उमर खालिद ने पुलिस FIR को बताया 'मज़ाक', कहा- फंसाने के लिए सबूत गढ़े गए
उमर खालिद ने गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत से कहा कि वह दिल्ली दंगों की बड़ी साज़िश वाले मामले में पांच साल से जेल में बंद हैं और इसे “एफआईआर का मज़ाक” बताया।
सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पैस ने कड़कडूमा कोर्ट के एएसजे समीर बाजपेयी के सामने, खालिद के खिलाफ आरोप तय करने का विरोध करते हुए यह दलील दी। मामला एफआईआर 59/2020 से जुड़ा है, जिसकी जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है। इसमें यूएपीए के तहत आरोप है कि 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में बड़ी साज़िश रची गई।
पैस ने कहा कि यूएपीए एफआईआर की कोई ज़रूरत ही नहीं थी, क्योंकि 51 लोगों की मौत अन्य एफआईआर का हिस्सा हैं और उनका अलग-अलग मामलों में निपटारा हो रहा है। उन्होंने कहा कि FIR 59/2020 कानूनन भी सही नहीं है और न ही इसमें गंभीर आरोप साबित होते हैं। अगर साज़िश का आरोप सही होता, तो उसका लिंक अन्य अपराधों से ज़रूर मिलता।
उन्होंने कहा कि “मेरे या मेरे जैसे कई अन्य लोगों के खिलाफ कोई लिंक नहीं है, न ही कोई बयान।”
पैस ने दंगों से जुड़े कई अन्य मामलों के आदेशों का हवाला दिया, जिनमें अदालतों ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाए और कई आरोपियों को बरी या डिस्चार्ज किया। उन्होंने कहा कि पुलिस पहले तय करती है कि किसे फंसाना है और फिर उसके खिलाफ झूठे दस्तावेज़ बनाकर चार्जशीट तैयार करती है।
उन्होंने कहा, “पहले तय किया जाता है कि इस शख्स को फंसाना है, फिर देखा जाता है कैसे किया जाए। ये उलटी इंजीनियरिंग है।”
पैस ने नवंबर 2020 में दाखिल पहली सप्लीमेंट्री चार्जशीट का ज़िक्र करते हुए कहा कि उसमें लगाए गए आरोपों का कोई आधार नहीं है, न कोई बयान और न ही कोई बरामदगी। “ये सिर्फ पुलिस की बनाई गई कहानियां हैं जिनका कोई सबूत नहीं है,” उन्होंने कहा।
2016 की देशद्रोह वाली चार्जशीट का हवाला देते हुए पैस ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने खुद उसमें माना था कि खालिद ने वे शब्द नहीं कहे थे। “आज वही एजेंसी उन्हीं झूठे शब्दों को इस केस में उन पर थोप रही है। यही दिखाता है कि चार्जशीट झूठ फैलाती है।”
मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।
खालिद को 13 सितंबर 2020 को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। हाल ही में 2 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीज़न बेंच ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने अब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
इसी आदेश में हाईकोर्ट ने शरजील इमाम, अतर खान, खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की ज़मानत भी खारिज कर दी। एक अन्य बेंच ने तस्लीम अहमद की ज़मानत अर्जी भी खारिज की।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि इमाम और खालिद की भूमिका “गंभीर” है, क्योंकि उन्होंने सांप्रदायिक भाषण देकर भीड़ को भड़काया। कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल को सामान्य गति से चलना चाहिए, जल्दबाज़ी न तो आरोपियों के लिए और न ही राज्य के लिए ठीक है।
FIR 59/2020 आईपीसी और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई थी। अन्य आरोपियों में ताहिर हुसैन, इशरत जहां, आसिफ इक़बाल तनहा, सफूरा ज़रगर, देवांगना कलीता, नताशा नरवाल, फैज़ान खान और कई अन्य शामिल हैं।
जून 2020 में सफूरा ज़रगर को गर्भावस्था के आधार पर मानवीय कारणों से जमानत मिली थी। जून 2021 में हाईकोर्ट ने merits पर आसिफ इक़बाल तनहा, देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को ज़मानत दी थी।