"ट्वीट्स में प्रथम दृष्टया मुस्लिम महिलाओं और समुदाय के खिलाफ अवमानना का प्रदर्शन", अंधेरी कोर्ट ने सफ़ूरा ज़रगर पर किए ट्वीट्स के लिए अभिनेत्री पायल रोहतगी के खिलाफ जांच के आदेश दिए
मुंबई की अंधेरी स्थित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने जामिया छात्र सफू़रा ज़रगर की गिरफ्तारी के संदर्भ में जून 2020 में किए एक ट्वीट के लिए पायल रोहतगी के खिलाफ पुलिस गिरफ्तारी की 202 जांच का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि ट्वीट्स प्रथम दृष्टया मुस्लिम महिलाओं और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अवमानना का प्रदर्शन करता है।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट भागवत जिरापे ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के प्रचार का अधिकार है।
"प्रत्येक समुदाय को अपने धर्म के प्रचार का का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को किसी भी समुदाय या किसी अन्य समुदाय के रिवाजों का मजाक उड़ाने का अधिकार नहीं है।
उपरोक्ट ट्वीट्स प्रथम दृष्टया मुस्लिम महिलाओं और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अवमानना का प्रदर्शन करते हैं।"
बॉलीवुड अभिनेत्री पायल रोहतगी ने उक्त ट्वीट्स जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की एमफिल छात्रा सफ़ूरा ज़रगर ( 27) की गिरफ्तारी के बाद किया था, जिन्हें दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
यह ट्वीट एक पत्रकार की पोस्ट के जवाब में था, जिसने जेल में ज़रगर की हालत के बारे में लोगों को अवगत कराना चाहा था। ज़रगर उस वक्त गर्भवती थी।
ज़रगर को बाद में मानवीय आधार पर जमानत दे दी गई। रोहतगी ने अपनी ट्वीट में कुरान, महिला जननांग विकृति (Genital Mutilation) का उल्लेख किया थ ,और पूछा था कि क्या मेडिकल की दुकान पर कंडोम नहीं थे।
उन ट्वीट्स के आधार पर, वकील अली कासिफ खान देशमुख ने एफआईआर दर्ज कराने के लिए अंबोली पुलिस से संपर्क किया था। हालांकि जब पुलिस ने शिकायत का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया, तो देशमुख ने दिसंबर में अंधेरी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने आरोप लगाया कि रोहतगी के ट्वीट में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सार्वजनिक रूप से नफरत और नाराजगी का प्रसार किया गया है।
उन्होंने रोहतगी पर मुस्लिम महिलाओं को बदनाम करने का आरोप लगाया था और धारा 153 (ए) (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 153 (बी) (राष्ट्रीय एकीकरण के लिए दुराग्रह का प्रदर्शन), 295 ( ए) (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का सोचा-समझा कृत्य काम), 298, और 505 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम धारा 67,67A (अश्लील सामग्री प्रकाशित करने की सजा) के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी।
30 मार्च को, कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 202 के तहत आदेश पारित किया। उक्त चरण में अदालत किसी आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने से पहले पुलिस को मामले की जांच करने का आदेश दे सकती है। पुलिस को 30 अप्रैल 2021 को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।
मजिस्ट्रेट ने कहा कि आईटी अधिनियम के तहत अनिवार्य 65 बी प्रमाण पत्र शिकायत के साथ संलग्न नहीं था, इसलिए जांच आवश्यक थी।
"आरोपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए ट्वीट के संबंध में तकनीकी जांच आवश्यक है, ऐसी जांच पुलिस के माध्यम से ही की जा सकती है।"
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