न्यायिक हिरासत में पहले से ही बंद व्यक्ति के खिलाफ निवारक हिरासत आदेश पारित करने के लिए "ट्रिपल टेस्ट" आवश्यक, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2023-03-21 09:40 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कथित चंदन तस्कर के निवारक निरोध आदेश को रद्द कर दिया। वह न्यायिक हिरासत में था। कोर्ट ने कहा कि निरोध आदेश में ट्रिपल टेस्ट के अनुसार आवश्यक निरोध प्राधिकरण की संतुष्टि को दर्ज नहीं किया गया था।

जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु और जस्टिस वी श्रीनिवास की खंडपीठ ने दोहराया कि न्यायिक हिरासत में एक व्यक्ति के खिलाफ निवारक निरोध का आदेश वैध रूप से पारित किया जा सकता है (1) यदि प्राधिकरण के पास पेश की गई सामग्री के आधार पर भरोसा करने का कारण है क‌ि अभियुक्त को जमानत पर रिहा होने वास्तविक संभावना है, और (2) कि इस तरह रिहा होने पर पूरी संभावना में वह प्रतिकूल गतिविधि में लिप्त होगा और (3) यदि अभियुक्त को ऐसा करने से रोकने के लिए उसे हिरासत में लेना आवश्यक समझा जाता है।

आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि हिरासत आदेश तब पारित किया गया था जब आरोपी न्यायिक हिरासत में था। यह प्रस्तुत किया गया था कि जब कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत में होता है तो प्राधिकरण को हिरासत का आदेश पारित करने से पहले अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के जमानत पर रिहा होने की आसन्न संभावना है और वह एक और अपराध या कई अपराध करेगा, जो कि सार्वजनिक भलाई, सार्वजनिक सुरक्षा आदि को प्रभावित करते हैं।

इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि दंडात्मक कानून कथित अपराध से निपटने के लिए पर्याप्त हैं और अभियुक्तों को एपी प्रीवेंशन ऑफ डेंजरस एक्टिवीटीज़ बूटलेगर्स, डकॉइट्स, ड्रग अफेंडर्स, गुंडाज़, इम्‍मोरल ट्रैफ‌िकिंग अफेंडर्स, लैंड ग्रैबर्स एक्ट (1986 का एक्ट नंबर वन) के तहत हिरासत में लेने की जरूरत नहीं है।

प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि हिरासम में रखे गए व्यक्ति पर वन अधिनियम के तहत गंभीर अपराध का आरोप लगाया गया है और वह लाल चंदन का तस्कर है और इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी पहलुओं पर स्पष्ट रूप से विचार किया गया है कि याचिकाकर्ता को निवारक हिरासत में रखा जाना आवश्यक है।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि हिरासत का आदेश एहतियाती उपाय है जो अभियुक्तों के भविष्य के व्यवहार के उचित पूर्वानुमान पर आधारित है।

दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद अदालत ने पाया कि ऋषि कुमार भास्करन मामले (MANU/AP/0694/2021) में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने ऐसे ही मामले का फैसला किया गया था, जिसमें कमरुन्निसा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (3 (1991) 1 एससीसी 128 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया गया और ट्रिपल टेस्ट लागू किया गया।

अदालत ने कहा कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकरण ने उपलब्ध सामग्री के आधार पर आरोपी के जमानत पर रिहा होने और इसी तरह के अपराध करने की संभावना पर चर्चा नहीं की, जो बड़े पैमाने पर राज्य के लिए हानिकारक होगा।

अदालत ने कहा,

"मौजूदा मामले में, आदेश के समापन भाग में, कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अन्य मामलों में भी उन्हें जमानत दिए जाने/रिहा किए जाने की पूरी संभावना है। इसके अलावा उसके पिछले रिकॉर्ड के आधार पर भविष्य में किए जा रहे अपराध की संतुष्टि का कोई संदर्भ नहीं है। इसलिए, यह आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय की खंडपीठ द्वारा निर्धारित मामले के कानून का उल्लंघन करता है।

हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि यद्यपि उस व्यक्ति पर गंभीर अपराधों का आरोप लगाया गया था, इस मामले में ट्रिपल टेस्ट के अनुसार आवश्यक संतुष्टि दर्ज नहीं की गई थी। इसलिए निरोध आदेश रद्द किए जाने योग्य है।

केस- वेंकटेशन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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