ट्रायल कोर्ट को किशोर न्याय अधिनियम के तहत आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के आधार के बारे में अपनी प्रथम दृष्टया राय देनी चाहिए : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट को प्रथम दृष्टया यह बताना होगा कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत किसी आरोपी के खिलाफ किस आधार पर आरोप तय किए गए हैं।
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा,
“ हालांकि आरोप के चरण में अदालत को विस्तृत आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है। हालाँकि, अदालत को प्रथम दृष्टया यह बताना होगा कि आरोप किस आधार पर तय किए गए थे।”
अदालत ने 06 जुलाई, 2022 को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका पर फैसला करते हुए यह टिप्पणी की। इस आदेश में उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 307 और 325 और किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 के तहत अपराध के लिए आरोप तय किए गए थे।
आरोपियों की ओर से पेश वकील राकेश मल्होत्रा ने अदालत को बताया कि आरोप पत्र आईपीसी की धारा 325, 506 और 34 और किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 के तहत दायर किया गया था।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित आदेश प्रत्यक्ष तौर पर गलत था क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने नाबालिग बच्चे की मां के सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए बयान के आधार पर अपनी राय दी थी, जबकि ऐसा कोई बयान रिकॉर्ड नहीं था। यह भी दलील दी गई कि एफएसएल रिपोर्ट भी दाखिल नहीं की गई।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि बच्चे की मां का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत कोई बयान दर्ज नहीं किया गया था।
अदालत ने विवादित आदेश को रद्द करते हुए कहा, “ यह भी एक स्थापित प्रावधान है कि केवल इसलिए कि आरोपी व्यक्तियों ने अपराध स्वीकार कर लिया है, आरोप तय नहीं किए जा सकते। विद्वान ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का मूल्यांकन करने और आरोप तय करने के लिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बाध्य है। ”
जस्टिस शर्मा ने आरोप तय करने के सवाल पर नए सिरे से बहस सुनने और कानून के अनुसार निर्णय लेने के लिए मामले को वापस ट्रायल कोर्ट में भेज दिया।
केस टाइटल : सुमैया जान @ सौमैया बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ दिल्ली
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