अगर रेफरल अस्पताल को COVID सुविधा में बदल दिया गया है तो आरोपी को ऐसे वैकल्पिक अस्पताल में उपचार दिया जाना चाहिए, जो COVID सुविधा ना होः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि यदि रेफरल अस्पताल को समर्पित COVID सुविधा में बदल दिया गया है तो एक आरोपी व्यक्ति को, वैकल्पिक अस्पताल से संपर्क कर, आवश्यक उपचार प्रदान किया जाना चाहिए, ना कि समर्पित COVID सुविधा में।
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की खंडपीठ जेलों की भीड़भाड़ कम करने, गैर-COVID रोगियों के अपेक्षित उपचार और अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी के कामकाज नहीं करने से संबंधित कई याचिकाओं पर विचार कर रही थी।
कोर्ट ने निर्देश दिया, "हम राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि आरोपी को जो भी उपचार/जांच की आवश्यकता है, उसे दूसरे अस्पताल से संपर्क करके प्रदान किया जाना चाहिए, जो कि 100% COVID सुविधा ना हो, अगर रेफरल अस्पताल को 100% COVID सुविधा में बदल दिया गया हो।"
कोर्ट ने यह भी देखा कि अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी उन मामलों से निपट नहीं सकती है, जिनमें सीआरपीसी की धारा 436 ए के तहत मौत की सजा के अपराध शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा, "मामले के तथ्यों के मूल्यांकन और समीक्षा का काम अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी का नहीं है, क्योंकि यह ट्रायल कोर्ट के लिए रिजर्व है। इसलिए, ऐसे सभी मामले, जिनमें ऐसे अपराध शामिल है, जिसके लिए मौत की सजा निर्धारित है, धारा 436 ए के तहत समिति के समक्ष नहीं रखी जा सकती है।"
धारा 436 ए में अधिकतम अवधि का प्रावधान किया गया है, जब तक कि एक विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखा जा सकता है। प्रावधान के अनुसार किसी व्यक्ति को, जिस अपराध के लिए उस पर मुकदमा चलाया जा रहा है्र यदि उसने उस अपराध के लिए निर्दिष्ट कारावास की अधिकतम अवधि की लगभग आधी अवधि उसने कैद में गुजार दी है तो उसे अदालत द्वारा जमानत के साथ या बिना व्यक्तिगत बांड पर रिहा किया जाएगा।
कोर्ट ने ये टिप्पणियों एडवोकेट कन्हैया सिंघल, सीनियर एडवोकेट मोहित माथुर और डीएसएलएसए के सेक्रेटरी एडवोकेट कंवल जीत अरोड़ा को सुनने के बाद दी।
सुनवाई के दौरान, सीनियर एडवोकेट मोहित माथुर ने अदालत को बताया कि उक्त समिति की पिछले 2 वर्षों से बैठक नहीं हुई है और समिति को संटेंस रिव्यू बोर्ड की तरह ही मामलों की समीक्षा करनी है।
इस पर, जस्टिस सांघी ने मौखिक रूप से कहा, "मुद्दा यह है कि समिति गुण-दोष के आधार पर मामले को जज नहीं कर रही है। धारा स्पष्ट है, यदि आप पर मौत की सजा का अपराध का आरोप लगाया जाता है तो धारा 436ए लागू नहीं होगी।"
एडवोकेट सिंघल ने अदालत को बताया कि कैदी के लिए हर मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाना संभव नहीं हो सकता है और ऐसे मामलों में जहां रेफरल अस्पताल 100% COVID की सुविधा है, जेल प्राधिकरण को दूसरे अस्पताल में, जहां COVID सुविधा ना हो, वहां उपचार देना चाहिए।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने याचिकाओं का निपटारा किया।