और अधिक सभ्य भारत बनाने के लिए, न्यायपालिका को मजबूत करना होगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने अपने विदाई भाषण में कहा
मंगलवार को सेवानिवृत्त हो रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने अपने विदाई भाषण में कहा कि समाज को सभ्य बनाए रखने के लिए एक मजबूत न्यायपालिका की आवश्यकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से आयोजित वर्चुअल विदाई समारोह में चीफ जस्टिस माथुर ने कहा, "दोस्तों, अधिक सभ्य भारत के लिए, न्यायपालिका को मजबूत बनाना हमारी जिम्मेदारी है।"
"हम एक प्रतिष्ठित और सम्मानित संस्थान का हिस्सा हैं। लाखों भारतीयों को हमारे ऊपर गहरा विश्वास है। केवल न्यायपालिका ही है, जो संवैधानिक नैतिकता के लिए मजबूती से खड़ी हो सकती है। न्यायपालिका ही है, जो संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करती है। यह न्यायपालिका है जो संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करती है। न्याय का वाहक होने के नाते यह भारत को हर जीवित व्यक्ति के लिए सबसे अच्छी जगह बनाने का सबसे प्रभावी उपकरण हो सकता है।"
सीजे माथुर ने कहा कि संयोग की बात है कि वह डॉ बीआर अंबेडकर के साथ अपना जन्मदिन साझा करते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने पहली बार 1970 में डॉ अंबेडकर का नाम सुना था, जब वह महाराष्ट्र में अपने रिश्तेदार के घर जा रहे थे, तो उन्होंने डॉ अंबेडकर की तस्वीर को नौकर के घर पर देखा, जिन्होंने डॉ अंबेडकर को "गरीबों के देवता" के रूप में पेश किया।
उन्होंने कहा, "तब से वह (डॉ अंबेडकर) मेरे लिए 'गरीबों के भगवान' हैं। मैंने उनके आदर्शों को संजोया है, जो हमारे संविधान में परिलक्षित होते हैं"।
संवैधानिक मूल्यों पर
लगभग तीस मिनट के भाषण में, चीफ जस्टिस माथुर ने संवैधानिक मूल्यों और संवैधानिक नैतिकता पर चर्चा की। चीफ जस्टिस माथुर ने कहा कि हमारा संविधान हमारे बहु-वर्गीय समाज के हर वर्ग का ख्याल रखता है।
जब यह (संविधान) संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता को संदर्भित करता है, तो वातावरण में गूंज गरीबों के उत्थान, वंचितों और प्रत्येक नागरिक को समान दर्जा देने की होती है।
"हमारे संवैधानिक मूल्य टेबल पर बनाई गई चीज नहीं हैं। ये मूल्य कई महान प्रयोगों, लंबे अनुभव और महान संघर्ष के बाद की आवश्यकता का स्वीकार्य हैं। ये संवैधानिक नैतिकता हैं जो न्याय प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं। ये (संवैधानिक मूल्य) वे मानक हैं, जो एक सभ्य समाज बनाते हैं।"
स्वतंत्र न्यायपालिका के महत्व को रेखांकित करते हुए, उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को कानून को छोड़कर हर प्रभाव से मुक्त रहना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके अनुभव पर
सीजे माथुर ने कहा कि उन्होंने तत्कालीन सीजेआई एसएच कपाड़िया से 2010 में राजस्थान हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरण का अनुरोध किया था। उन्हें 2017 में ही ट्रांसफर मिल पाया।
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में "शानदार परंपराएं" हैं, जहां न्यायाधीश और वकील "बहुत ही विनम्र" हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय न केवल देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, बल्कि विभिन्न प्रकार के मुकदमों का निस्तारण कर रहा है। यह देश की 1/6 वीं आबादी के न्याय की जरूरतों को पूरा कर रहा है। कार्य की विशाल मात्रा और विशाल क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को देखते हुए, अन्य अदालतों के लिए बनाई गई योजनाओं और नीतियों को इलाहाबाद में यों ही नहीं अपनाया जा सकता है।
चीफ जस्टिस माथुर ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार न्यायपालिका को अपनी योजनाओं को पूरा करने में मदद करने में सहायक रही। उन्होंने "अपने वादे को निभाने के लिए" मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद दिया।
उन्होंने भाषण के अंत में कहा, "मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय बंद होने जा रहा है ... मैं असफल रहा या सफल, यह आप सभी को तय करना है। मैं सम्मान के साथ सिर झुकाता हूं, मैं आपके निर्णयों के लिए खुद को श्रद्धा के साथ पेश करता हूं। धन्यवाद आप सभी का।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में सीजे गोविंद माथुर ने नागरिक स्वतंत्रता संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत डॉ कफील खान की नजरबंदी और यूपी सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर लगाए गए "नेम एंड शेम" के बैनर हटाने के लिए दिए गए फैसले महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हुई हिंसा के लिए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश भी दिया था। COVID संकट के दौरान, उनकी बेंच ने प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के लिए स्वतः संज्ञान आदेश पारित किया था।
चीफ जस्टिस गोविंद माथुर के महत्वपूर्ण आदेशों पर एक विस्तृत लेख यहां पढ़ा जा सकता है।
जस्टिस गोविंद माथुर ने राजस्थान हाईकोर्ट में कानून की प्रैक्टिस शुरू की थी। उन्हें दो सितंबर 2004 को राजस्थान हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 29 मई 2006 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्हें 21 नवंबर 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।
24 अक्टूबर 2018 को, सबसे वरिष्ठ जज होने के नाते, उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 10 नवंबर, 2018 को उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 14 नवंबर 2018 को, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।