'दो मामले नहीं हो सकते': दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष CPIL की याचिका के मद्देनजर राकेश अस्थाना की DPC के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका रद्द की
दिल्ली हाईकोर्ट ने राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी है। हाईकोर्ट ने याचिका इस तथ्य के मद्देनजर रद्द की कि इसी तरह की याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई है।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि कार्यवाही के दोहराव और विरोधाभासी आदेशों की संभावना से बचने के लिए मामले को स्थगित किया जाता है।
पिछली तारीख पर कोर्ट ने सरकार से कहा था कि अगर इसी तरह के मुद्दों को उठाने वाली कोई अन्य याचिका दायर की गई है तो उससे अवगत कराएं। जिसके बाद सीपीआईएल के वकील एडवोकेट प्रशांत भूषण ने पीठ को सूचित किया कि इस विषय पर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश की गई है और कल प्रारंभिक सुनवाई के लिए आने की संभावना है।
भूषण ने बेंच को बताया, " मैं इस मामले में पेश नहीं हो रहा हूं। लेकिन मैंने अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक समान याचिका दायर की है। याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से दायर की गई है। इसे 10 अगस्त को दायर किया गया था और इसके कल प्रारंभिक सुनवाई के लिए आने की संभावना है।"
हालांकि सरकारी वकीलों ने ऐसी किसी भी कार्यवाही से अवगत होने से इनकार किया, अदालत ने मामले को स्थगित कर दिया।
एडवोकेट बीएस बग्गा के माध्यम से किसी सद्रे आलम द्वारा दायर, मौजूदा याचिका केंद्र सरकार द्वारा 27 जुलाई को जारी किए गए आदेश को चुनौती देती है, जिसमें अस्थाना को इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति और सेवा का विस्तार दिया गया था। याचिका इस बात पर जोर देती है कि अस्थाना को 31 जुलाई को सेवानिवृत्त होने के चार दिन पहले दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अस्थाना किसी भी वैधानिक श्रेणी (डीओपीटी के मौलिक नियम 56) में नहीं आते हैं, जहां नियुक्ति को सेवानिवृत्ति की आयु से आगे बढ़ाया जा सकता है। याचिका में आगे कहा गया है कि अस्थाना की नियुक्ति प्रकाश सिंह बनाम यूओआई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई आधिकारिक घोषणा का उल्लंघन है।
दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया है कि दिल्ली पुलिस बहुत अलग तरीके से काम करती है और प्रकाश सिंह का फैसला इस मामले में लागू नहीं होता है। इसने याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और कहा कि एक जनहित याचिका सेवा मामलों में सुनवाई योग्य नहीं है और दावा किया गया कि किसी भी और हर सरकारी नियुक्ति को चुनौती देना "तथाकथित अखंडता रक्षकों" का अभ्यास बन गया है।
जहां तक सीपीआईएल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का संबंध है, निम्न बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है: (i) अस्थाना का शेष कार्यकाल न्यूनतम छह महीने का नहीं था; (ii) दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोई यूपीएससी पैनल नहीं बनाया गया था; और (iii) दो साल के न्यूनतम कार्यकाल के मानदंड को नजरअंदाज कर दिया गया है।
याचिका में कहा गया है, "दिल्ली में पुलिस आयुक्त का पद राज्य के डीजीपी के पद के समान है और वह दिल्लीत-एनसीटी के पुलिस बल का प्रमुख हैं और इसलिए, इस माननीय कोर्ट द्वारा प्रकाश सिंह मामले (सुप्रा) में डीजीपी के पद पर नियुक्ति के संबंध में पारित निर्देश को आक्षेपित नियुक्ति करते समय केंद्र सरकार को पालन करना चाहिए था।"
केस का शीर्षक: सद्रे आलम बनाम यूनियर ऑफ इंडिया और अन्य