समन जारी करने के चरण में आईपीसी की धारा 499 के पहले अपवाद के लाभ का दावा नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-07-29 09:58 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत परिभाषित मानहानि के अपराध में समन जारी करने के चरण में पहले अपवाद के लाभ का दावा नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति डॉ योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि,

"समन जारी करने के चरण में आईपीसी की धारा 499 के पहले अपवाद के लाभ का दावा नहीं किया जा सकता है।"

आईपीसी की धारा 499 का पहला अपवाद इस प्रकार बताता है कि,

"किसी भी व्यक्ति के बारे में जो कुछ भी सच है, उसे कहना मानहानि नहीं है, अगर यह जनता की भलाई के लिए है कि लांछन लगाया जाना चाहिए या प्रकाशित किया जाना चाहिए। यह जनता की भलाई के लिए है या नहीं, यह तथ्य का सवाल है।"

गौरतलब है कि यह अपवाद सत्य के प्रकाशन को एक पर्याप्त औचित्य के रूप में मान्यता देता है, अगर इसे जनता की भलाई के लिए बनाया गया हो।

कोर्ट के समक्ष मामला

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी के समक्ष लंबित आईपीसी की धारा 500 के तहत शिकायत मामले की कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था।

आवेदक के वकील ने 18 जनवरी, 2020 के उस आदेश का भी विरोध करने की मांग की जिसके संदर्भ में आवेदक को तलब किया गया था।

यह तर्क दिया गया कि आईपीसी की धारा 499 के तहत अपराध इसलिए नहीं बनाया जा सकता क्योंकि मामला उस धारा के पहले अपवाद के तहत कवर किया होता है जो प्रदान करता है कि यदि सार्वजनिक भलाई के लिए आरोप लगाया जाता है, तो यह मानहानि नहीं होगा।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने शुरुआत में चमन लाल बनाम पंजाब राज्य (1970) 1 एससीसी 590 मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया। यह मानने के लिए कि सार्वजनिक भलाई तथ्य का सवाल है और पहले अपवाद के तहत दो अवयवों को साबित करने का दायित्व यानी आरोप सही है और प्रकाशन सार्वजनिक भलाई के लिए है, यह आरोपी पर है।

न्यायालय ने इसके अलावा समन जारी करने के चरण के बारे में कहा कि समन जारी करने के चरण में मजिस्ट्रेट मुख्य रूप से शिकायत में लगाए गए आरोपों या उसी के समर्थन में दिए गए सबूतों से संबंधित है और उसे केवल प्रथम दृष्टया संतुष्ट होना है कि क्या अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं।

अदालत ने कहा कि,

"इस स्तर पर विस्तृत तथ्यात्मक पहलुओं या मामले के मैरिट या दोष में प्रवेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"

न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सवाल यह है कि जनता की भलाई के लिए आरोप लगाया गया था या नहीं, इसलिए यह तथ्य का सवाल होगा, जिसे धारा 499 के पहले अपवाद का लाभ लेने के लिए अभियुक्त द्वारा साबित करना आवश्यक होगा। इस संबंध में बचाव एक प्रश्न है। वास्तव में केवल ट्रायल के दौरान ही निर्णय लिया जा सकता है और समन जारी करने के चरण में पहले अपवाद के लाभ का दावा नहीं किया जा सकता है।

केस का शीर्षक - राजेश चूड़ीवाला बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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