"एक जज को कोरम पूरा करने के प्रयोजन के रूप में मानने की प्रवृत्ति लंबे समय से रही है", कागजात की दो प्रतियां न लाने पर गुजरात हाईकोर्ट ने कहा
गुजरात उच्च न्यायालय में पेश अतिरिक्त सरकारी वकील (एपीपी) द्वारा कागजों की दूसरी प्रति नहीं पेश करने पर दो जजों की पीठ ने टिप्पणी की, "एक जज को कोरम पूरा करने के प्रयोजन के रूप में मानने की प्रवृत्ति लंबे समय से रही है।"
अतिरिक्त सरकारी वकील एक मामले में दोषमुक्त किए जाने के खिलाफ एक अपील में उन कागजों की दूसरी प्रति पेश करने में विफल रहे, जिन पर उन्होंने भरोसा किया था।
जब एपीपी ने दास्तेवजों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया तब जस्टिस परेश उपाध्याय ने मौखिक रूप से पूछा, "मेरी प्रति कहां है? अगर आपके पास एक प्रति है तो वह मेरे भाई जज की होगी। क्या अगली बार आपके पास दो प्रति होंगी?"
जस्टिस परेश उपाध्याय और जस्टिस एसी जोशी की खंडपीठ दिलीपभाई दहयाभाई के संबंध में पाटन अदालत द्वारा पारित दोषमुक्ति के आदेश के खिलाफ गुजरात राज्य की एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन पर आईपीसी की धारा 354, 363, 374 376, 377 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सुनवाई के दौरान जब अतिरिक्त लोक अभियोजक ने कुछ कागजात बेंच को देने का प्रयास किया, और चूंकि उसकी प्रति केवल एक ही थी तो बेंच ने कहा, " ...उनके कार्यालय (एपीपी) को यह आदत डालनी चाहिए कि जब मामलों को एक डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया जाता है, तो एक बुनियादी शिष्टाचार होना चाहिए कि अगर बेंच को कुछ कागजात दिए जाने हैं, तो उसकी दो प्रतियां होंगी।"
अंत में जस्टिस परेश उपाध्याय ने कहा, "यह बुनियादी अनुशासनहीनता है। बेंच पर कनिष्ठ जज के रूप में बैठे हुए यदि मैंने यह कहा होता तो यह उचित नहीं होता, हालांकि, एक वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में मेरी कुछ जिम्मेदारी है कि यदि मेरे पास केवल एक प्रति है जो मेरे भाई जज को दी जानी है।"