समरी सूट | इनवॉइस/ बिल आदेश 37 सीपीसी के दायरे में "लिखित अनुबंध": जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Update: 2023-05-20 11:46 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीपीसी के आदेश 37 के तहत समरी सूट शुरु करने के लिए इनवॉइस/बिल "लिखित अनुबंध" के समान है।

जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ समरी सूट में मूल प्रतिवादी यूटी एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से दी गई याचिका पर विचार कर रही थी, जिसे समरी सूट का बचाव करने के लिए बिना शर्त अनुम‌ति देने से सिविल कोर्ट के इनकार के खिलाफ दायर किया गया था।

मूल वादी ने सम्पदा विभाग के लिए उसकी ओर से किए गए कुछ कार्यों के संबंध में देय राशि की निकासी की मांग की थी। यूटी ने बचाव के लिए अनमति मांगी थी, जिसे 37.82 लाख रुपये के भुगतान के अधीन अनुमति दी गई थी।

इस प्रकार यूटी प्रशासन ने अन्य बातों के साथ-साथ सीपीसी के आदेश 37 के तहत समरी सूट स्थापित करने के लिए लिखित समझौते की मौजूदगी की बुनियादी शर्त के मद्देनज़र हाईकोर्ट का रुख किया।

दूसरी ओर प्रतिवादी-वादी ने दीवानी अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता-प्रतिवादी द्वारा दायर आपत्तियों की एक प्रति पेश की, जिसमें वादी द्वारा कार्यों के निष्पादन को स्वीकार किया गया और साथ ही उन्हें देय बिल राशि 37.82 लाख सदर कोषागार में जमा की गई।

उपरोक्त के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने कहा,

"ट्रायल कोर्ट ने यहां प्रतिवादियों/याचिकाकर्ताओं को बिना शर्त अनुमति देने से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश किए गए तर्क और आधार दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा मेसर्स पंजाब पेन हाउस बनाम सम्राट साइकिल लिमिटेड, एआईआर 1992 दिल्ली 1 में निर्धारित कानूनी सिद्धांतों से मेल नहीं खाते हैं, जिसमें यह माना गया है कि चालान/बिल सीपीसी के आदेश 37 के विचार के दायर "लिखित अनुबंध" हैं और इस प्रकार, यहां प्रतिवादियों/याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई यह दलील कि वादी/प्रतिवादी संख्या 1 से 6 और प्रतिवादियों/याचिकाकर्ताओं के बीच कोई लिखित अनुबंध मौजूदा नहीं है, जो उन्हें आदेश 37 के तहत समरी सूट स्थापित करने का अधिकार देता है, सीपीसी कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।"

उक्त टिप्प‌णियों के साथ जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य बनाम शब्बीर अहमद डार और अन्य

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 126

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