[तनिष्क के विज्ञापन पर सुदर्शन टीवी का शो] सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे समाचार चैनलों को विनियमित करने के लिए दिशा निर्देशों की मांग
गहनों के ब्रांड तनिष्क के विज्ञापन में अंतर-धार्मिक विवाह दिखाए जाने के बाद पैदा हुआ विवाद दिल्ली हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें समाचार चैनलों को भड़काऊ भाषणों और सांप्रदायिक वैमनस्य की सामग्री दिखाने के मामले में विनियमित करने की प्रार्थना की गई है।
याचिका में विशेष रूप से मांग की गई है कि अधिकारियों को निर्देश जारी किए जाएं कि वे समाचार एजेंसियों की सामग्री की जांच करने के लिए एक तंत्र विकसित करें, जो समुदाय के बीच नफरत फैला रहा हैं, बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ हैं, भड़काऊ, अलगाववादी, नफरत से भरे, विभाजनकारी और भारत संघ की भावना के खिलाफ हैं।
दलील में कहा गया है कि सुदर्शन न्यूज चैनल के प्रधान संपादक और शो के एंकर सुरेश चव्हाणके ने अपने शो में उल्लेख किया कि, "लव जिहाद को अब विज्ञापनों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है और उसे उद्धृत करने के लिए उन्होंने 'विज्ञापन जिहाद' का प्रयोग किया और यह संकेत देने का कपटपूर्ण प्रयास किया गया है कि समुदाय विज्ञापन एजेंसी में घुसपैठ करने की सुनियोजित साजिश में शामिल किया है।"
एडवोकेट असगर खान की ओर से दायर याचिका में कहा गया, "यह स्पष्ट रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि उक्त विज्ञापन का उद्देश्य इन दो धार्मिक समूहों के बीच एकता और भाईचारे की भावना को प्रदर्शित करना था। हालांकि, सुदर्शन टीवी ने 12 अक्टूबर, 2020 को अपने 8 बजे के शो 'बिंदास बोल' में उपरोक्त धार्मिक समूहों के बीच नफरत भड़काने की पूरी कोशिश की।"
गौरतलब है कि इस संदर्भ में, याचिका उत्तरदाता (ओं) को परमादेश रिट या अन्य उपयुक्त रिट, आदेश या माननीय न्यायालय की ओर से निर्देश जारी करने की मांग करती है, ताकि साम्प्रदायिक वैमनस्य और घृणा भाषण के मामले में समाचार चैनलों को सेंसर करना सुनिश्चित हो सके।
याचिकाकर्ता ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार (उत्तरदार एक), प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) (उत्तरदाता दो), न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) (उत्तरदाता 3) और सुदर्शन समाचार चैनल (चैनल के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके के माध्यम से) (उत्तरदाता नंबर 4) को मामले में प्रतिवादी बनाया है।
याचिकाकर्ता-एडवोकेट असगर खान ने दलील में कहा है कि केबल एंड टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) रूल्स के तहत प्रोग्राम कोड यह निर्धारित करता है कि कोई भी कार्यक्रम ऐसा नहीं होना चाहिए जिसमें "धर्मों या समुदायों पर हमला हो या धार्मिक समूहों के प्रति अवमाननापूर्ण दृश्य और शब्द हों या जो साम्प्रदायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दें।"
इसके अलावा, यह दलील दी गई है कि सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ने केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम 1995 के तहत दिए गए प्रोग्राम कोड और नैतिकता और समाचार प्रसारण मानक विनियमों का उल्लंघन किया है।
एक विशेष समुदाय के लिए अपमानजनक विचारों की अभिव्यक्ति में विभाजनकारी क्षमताहै, मुक्त भाषण के साथ अन्य मूल्य भी हैं, जिन्हें संतुलित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।
याचिका में कहा गया है, "ऐसी अभिव्यक्ति का उपयोग, जो समूह के खिलाफ घृणा बढ़ाता, घृणा भाषण का उपयोग, जो बहुसंख्यक आबादी की नजरों में समूह के सदस्यों को अवैध बनाता, समाज के भीतर उनकी प्रतिष्ठा और स्वीकृति को कम करता है। इसलिए घृणा भाषण समूह के एक सदस्य को परेशान करने से बहुत आगे बढ़ गया है। इसका सामाजिक प्रभाव हो सकता है। घृणा भाषण बाद के लिए जमीनी काम करता है, कमजोरों को व्यापक हमले का शिकार बनाता है, जो भेदभाव से अलगाव तक, पृथक्करण, निर्वासन, हिंसा और सबसे चरम मामलों में, नरसंहार तक हो सकता है। घृणा भाषण, समूह की बहस के तहत मूल विचारों का जवाब देने की क्षमता पर भी प्रभाव डालता है, जो लोकतंत्र में उनकी पूर्ण भागीदारी में गंभीर बाधा है।"
याचिका का दावा है कि प्रसारण (सुदर्शन टीवी द्वारा) घृणा भाषण के दायरे में आता है। याचिका में कहा गया है, "सुदर्शन न्यूज चैनल द्वारा प्रसारित किए गए कार्यक्रमों के आधार पर...मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा बढ़ी है।"
याचिका में कहा गया है-
* सुदर्शन न्यूज चैनल का कार्य "पूरी तरह से अनियंत्रित" है और एक समुदाय विशेष की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है और नफरत और हिंसा फैला रहा है।
* भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की धारणा दुरुपयोग करके दिया गया घृणास्पद भाषण, जिम्मेदार भाषण के बिलकुल खिलाफ खड़ा है।
* इस तरह का बहिष्कार देश के सभी लोगों में भाईचारे की भावना का उल्लंघन करता है, जो हमारे संविधान के उद्देश्यों में से एक है और प्रस्तावना में निर्धारित है।
* सामाजिक बहिष्कार के इस रूप में अस्पृश्यता की दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा शामिल है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन और आजीविका के अधिकार का भी उल्लंघन है।
* उत्तरदाता 4 द्वारा अपमानजनक प्रकाशन और प्रसारण ने सांप्रदायिक असहमति को बढ़ावा दिया है, जो कि एक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ हैं और सांप्रदायिक सद्भाव के रखरखाव के लिए गंभीर रूप से पूर्वाग्रहपूर्ण हैं।
याचिका में प्रार्थना
याचिका में अधिकारियों के लिए दिशा निर्देश मांगे गए हैं ताकि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत परिकल्पित प्रतिबंधों को शामिल किया जा सके और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को सुनिश्चित किया जा सके कि मीडिया भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग न करे।
यह आगे भी निर्देशों की मांग करता है कि मीडिया हाउस केवल सही तथ्यों की रिपोर्ट करें, न कि विचारों का और जो वे प्रकाशित कर रहे हैं उसके लिए जिम्मेदार हों। उनके द्वारा लगाए गए आरोपों या उनके मंच का उपयोग करके लगाए गए आरोपों के लिए उन्हें सक्षम न्यायालय में विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए भी उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।
याचिका प्रकाशन सामग्री और विज्ञापनों की जांच के लिए एक तंत्र बनाने की मांगी भी करती है।
याचिका में सुदर्शन न्यूज द्वारा दिखाए गए कथित घृणा/ अपमानजनक भाषणों को अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित कुछ अधिकारों का संरक्षण) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) के उल्लंघन के रूप में घोषित करने की मांग की गई है।
जैसा कि उल्लेख किया गया है, याचिका एडवोकेट असगर खान ने अब्दुल ताहिर खान और अनुभा अग्रवाल (विधि छात्र) के साथ मिलकर दायर की है।
(पीटीआई से इनपुट्स के साथ)