राज्य एक धार्मिक संप्रदाय की आंतरिक लड़ाई में मदद कर रहा है: गुजरात हाईकोर्ट ने पुजारियों के खिलाफ पारित निर्वासन आदेश को रद्द किया
गुजरात हाईकोर्ट ने एक धार्मिक संप्रदाय की आंतरिक लड़ाई में सहयोग करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट चुनावों के संबंध में स्वामीनारायण संप्रदाय के आंतरिक विवाद के कारण गधाड़ा मंदिर के दो पुजारियों के खिलाफ पारित निर्वासन आदेश को रद्द कर दिया।
जस्टिस परेश उपाध्याय की खंडपीठ मंदिर के दो पुजारियों स्वामी सत्यप्रकाशदासजी और स्वामी घनश्यामवल्लभदासजी की ओर से दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने बोटाद जिला अधिकारियों द्वारा उनके खिलाफ पारित किए गए निर्वासन आदेश को चुनौती दे रहे थे।
मामला
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि गुजरात पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए एसडीएम, बोटाद द्वारा उन्हें कई जिलों - बोटाद, भावनगर, अमरेली, राजकोट, सुरेंद्रनगर और अहमदाबाद से दो साल की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया।
गौरतलब है कि इन दोनों को पुलिस द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार एक आदेश के तहत निर्वासित कर दिया गया था, जबकि स्वामीनारायण संप्रदाय के दो पक्षों (एक आचार्य पक्ष से और दूसरा देव पक्ष से संबंधित था) के बीच विवाद चल रहा था।
कोर्ट ने पाया कि उन्हें जारी नोटिस और उनके खिलाफ पारित आदेश में ट्रस्ट के चुनाव, जो धार्मिक संप्रदाय (स्वामीनारायण संप्रदाय) का प्रबंधन करता है, जिससे याचिकाकर्ता संबंधित हैं, को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ निर्वासन आदेश पारित करने के लिए एक कारक के रूप में माना गया था।
इससे पहले, 15 जून, 2021 के आदेश के द्वारा न्यायालय ने आक्षेपित आदेशों के निष्पादन पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट की टिप्पणियां
रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने शुरू में कहा कि मंदिर ट्रस्ट के चुनाव का दांव इतना ऊंचा था कि यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया।
इस संबंध में न्यायालय ने कहा,
"यह इस न्यायालय की प्रथम दृष्टया संतुष्टि को और मजबूत करता है कि राज्य अपने उपकरणों के माध्यम से एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक समूह के पुजारियों के खिलाफ निर्वासन आदेशों का सहारा लेकर, दूसरे पक्ष के खिलाफ कानूनी लड़ाई सहित, लड़ाई में सहयोग कर रहा है।"
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार करते हुए संबंधित एसडीएम की संतुष्टि सहित याचिकाकर्ताओं को निर्वासन आदेश देने पर न्यायालय का विचार था कि किसी भी मापदंड पर आक्षेपित आदेश स्थिर नहीं और उसे रद्द करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए एसडीएम, बोटाद द्वारा पारित आक्षेपित आदेशों को निरस्त कर दिया।
केस शीर्षक - स्वामी सत्यप्रकाशदासजी गुरु घनश्यामप्रसाद दासजी और स्वामी घनश्यामवल्लभदासजी गुरु स्वामी नारायणप्रियदासजी बनाम गुजरात राज्य और अन्य।