स्टेट बार काउंसिल को ऐसे बार एसोसिएशनों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, जो अपने सदस्यों को विशेष अभियुक्तों का बचाव नहीं करने के लिए कहते हैंः कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2021-04-21 06:10 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि स्टेट बार काउंसिल को ऐसे बार एसोसिएशनों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, जो अपने सदस्यों को विशेष अभियुक्तों का बचाव नहीं करने के लिए कहते हैं।

चीफ जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने एएस मोहम्मद रफी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि "किसी भी बार एसोसिएशन की इस प्रकार के प्रस्ताव को पारित करने की कार्रवाई कि उसका कोई भी सदस्य, किसी विशेष अभियुक्त के लिए, चाहे वह वह एक पुलिसकर्मी हो या संदिग्ध आतंकवादी, बलात्कारी, सामूहिक हत्यारा, आदि हो, के लिए प्रकट नहीं होगा, संविधान के सभी मानदंडों, कानून और पेशेवर नैतिकता के खिलाफ है।"

कोर्ट मैसूर डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पिछले साल सीएए विरोधी एक प्रदर्शन में "फ्री कश्मीर" ‌का पोस्टर दिखाने के आरोप में राजद्रोह कानून के तहत बुक की गई एक छात्रा का मुकदमा नहीं लड़ने के प्रस्ताव पारित किया गया था।

एसोसिएशन ने अदालत को बताया कि उक्त प्रस्ताव को "कुछ अज्ञात खुराफातियों" ने उनकी नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया था।

एसोसिएशन की ओर से पेश एडवोकेट बसवराज एस सप्पनवार ने का कि कुछ शरारती तत्वों ने ऐसा किया था, जैसे ही मुझे पता चला मैंने उसे हटवा दिया था।

उन्होंने कहा कि प्रतिवादी 2 (बार एसोसिएशन) के 100 से अधिक वकीलों ने उक्त आरोपी की ओर से वकालत दायर की और उन्हें अदालत ने अग्रिम जमानत दे दी।

वकील ने मैसूर सिटी एडवोकेट्स मल्टीपर्पस कोऑपरेटिव सोसाइटी की ओर से भेजे गए जवाब की जानकारी भी कोर्ट को दी, जिसने विवादित प्रस्ताव को पारित करने से इनकार किया था।

जिसके बाद अदालत ने आदेश में कहा"यह विवाद नहीं है कि प्रतिवादी के नोटिस बोर्ड पर एक नोटिस प्रकाशित किया गया। प्रतिवादी की ओर से आपत्तियों का विवरण दर्ज किया गया है, जिसमें यह इंगित किया गया है कि यह इस तरह का कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है और अभियुक्त की ओर से सदस्य पेश हुए हैं और यह कि अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

बार एसोसिएशन द्वारा 16 मार्च के आदेश के संदर्भ में एक ज्ञापन दायर किया गया है। मैसूर सिटी एडवोकेट्स मल्टीपर्पस कोऑपरेटिव सोसाइटी द्वारा 25 मार्च की तारीख के एक पत्र को जारी किया गया है। यह कहा गया है कि उक्त सोसायठी ने ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया है।"

अदालत ने कहा "इस प्रकार जो स्थिति उभरती है, उसमें कोई नहीं जानता कि बार एसोसिएशन के नोटिस बोर्ड पर किसने नोटिस चिपकाया था।"

पीठ ने कहा, "जब हम प्रतिवादी 2 (बार एसोसिएशन) द्वारा उठाए गए स्टैंड की सराहना करते हैं, जो यह दर्शाता है कि एसोसिएशन के सदस्यों ने अभियुक्त का बचाव किया, तो हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा एएस मोहम्मद रफी बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में निर्धारित कानून का उल्लेख करें।"

कोर्ट ने कहा "यह वह कानून है, जो सभी बार एसोसिएशन और उसके सदस्यों को बांधता है। कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल को कानूनी स्थिति से अवगत कराया जाता है और हमें यकीन है कि कोई भी बार एसोसिएशन, एएस मोहम्मद रफी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में निर्णय के पैरा 24 में निर्धारित कानून के विपरीत काम करता है तो राज्य बार काउंसिल तेजी से कार्रवाई करेगा। "

इसके बाद अदालत ने अधिवक्ता रमेश नाइक एल की ओर से दायर याचिका का निस्तारण किया।

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