''खेदजनक स्थिति है कि अधिकारी गैंग-चार्ट तैयार करने में उचित ध्यान नहीं दे रहे हैं, यह आर्टिकल 21 का उल्लंघन'' : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-07-10 10:15 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने गैंग चार्ट तैयार करने में अधिकारियों के लापरवाह और सुस्त रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने पाया कि कुछ मामलों में अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से गैंग-चार्ट तैयार किया गया है और गैंग चार्ट आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अपराध के मामलों की गलत जानकारी का संकेत दे रहा था। इसलिए अदालत के इस मामले में अधिकारियों के रवैये पर सवाल भी उठाया।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने एक आरोपी/आवेदक की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अवलोकन किया, जिसने दलील दी थी कि वह कुछ मामलों में आरोपी नहीं था, जैसा कि गैंग चार्ट में दावा किया गया है। उसने कहा था कि पुलिस स्टेशन में गलत तरीके से गैंग चार्ट तैयार किया था और उक्त मामलों में आवेदक का भी नाम शामिल कर दिया गया।

कोर्ट ने कहा कि,

''यह वास्तव में खेदजनक स्थिति है कि गैंग-चार्ट तैयार करते समय संबंधित अधिकारियों द्वारा उचित एहतियात और सावधानी नहीं बरती गई है और अपराध के मामलों से संबंधित प्रासंगिक तथ्यों और सूचनाओं को सत्यापित किए बिना ही गैंग-चार्ट तैयार किया गया।''

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में गैंग-चार्ट सरसरी तौर पर तैयार किया गया था, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किए गए आरोपी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सरसरी तौर पर गैंग चार्ट तैयार करने से जमानत आवेदन के निपटारे में बाधा उत्पन्न होती है क्योंकि अदालतों द्वारा उक्त गैंग-चार्ट को देखते हुए उन्हें जमानत नहीं दी जाती है।

कोर्ट ने कहा, ''न्यायालय उस गैंग-चार्ट के आधार पर निष्कर्ष निकालता है, जो वास्तव में गलत होता है।''

इसलिए, पुलिस अधीक्षक, जिला-सीतापुर को जमानत आवेदन की सामग्री का जवाब देते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया था और साथ ही पूछा गया था कि वर्तमान आवेदक के खिलाफ गैंग-चार्ट लापरवाह और सुस्त तरीके से क्यों तैयार किया गया?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यूपी गैंगस्टर अधिनियम 1986 के तहत दायर किए जा रहे उन ''अधूरे'' गैंग-चार्ट को गंभीरता से लिया था, जो अंततः कथित गैंगस्टरों को ''आसानी से जमानत प्राप्त करने'' में मदद करते हैं,जिससे समाज को खतरा पैदा होता है।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की एकल पीठ ने कहा था कि इंटरनेट के युग में, जहां पूरी दुनिया की जानकारी हर किसी की उंगलियों पर है,वहां संबंधित अधिकारियों से ऐसे व्यापक गैंग-चार्ट तैयार करने की अपेक्षा की जाती है जो अदालत को जमानत याचिकाओं पर प्रभावी ढंग से निर्णय लेने में मदद करें।

पीठ ने कहा था कि,''गैंग चार्ट तैयार करने में संवेदनाहीन और लापरवाह दृष्टिकोण न केवल उस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जो कुख्यात अपराधी हैं, बल्कि अधिनियमन का उद्देश्य भी खराब हो जाएगा। आरोपी के पास कानून की अदालतों से जमानत पाना आसान होगा।''

केस का शीर्षक - बाबूराम लोनिया बनाम यू.पी. राज्य

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