'सामाजिक कलंक असहनीय होगा': उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को गर्भावस्था समाप्त करवाने की अनुमति दी
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को मेडिकल बोर्ड द्वारा गर्भपात की सिफारिश करने के बाद 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को 25 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था का मेडिकल टर्मिनेशन करवाने की अनुमति दे दी है।
जस्टिस संजय कुमार मिश्रा ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह बिना किसी देरी के जितनी जल्दी हो सके गर्भावस्था को समाप्त करने की दिशा में काम करें।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,''गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए आगे बढ़ने से पहले, मेडिकल बोर्ड के लिए पीड़ित लड़की के पिता से यह घोषणा प्राप्त करना उचित होगा कि उन्होंने अपनी बेटी की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए सहमति दी है। उल्लेखनीय है कि पीड़िता और उसके पिता वर्चुअल रूप से मामले की सुनवाई से जुड़े हुए हैं और उन्होंने अपनी सहमति दे दी है। इसके बारे में सूचित किए जाने पर व इसमें शामिल जोखिम को जानते हुए उन्होंने गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए सुस्पष्ट शब्दों में और स्पष्ट शर्तों पर सहमति व्यक्त की है।''
अदालत ने यह भी कहा कि गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन डॉ. चित्रा जोशी, एचओडी, ओबीजीवाई, जीडीएमसी, देहरादून के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए और चिकित्सा प्रक्रिया के दौरान, अगर उन्हें पीड़ित लड़की के जीवन के लिए कोई जोखिम या खतरा लगता है, तब उनके पास गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की प्रक्रिया को रद्द करने का विवेकाधिकार होगा।
पीठ ने कहा,''जिन कारणों ने हमें गर्भपात का आदेश पारित करने के लिए राजी किया है,वो यह हैं कि याचिकाकर्ता द्वारा गर्भधारण उसके करीबी रिश्तेदार द्वारा उसके साथ किए गए बलात्कार के अपराध का परिणाम है। अविवाहित मां (पीड़ित लड़की) नाबालिग है और उसे अनचाही गर्भावस्था का कलंक झेलना पड़ेगा। यह उसके आगे के शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करेगा। यह उसके भविष्य की शिक्षा की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा।''
अदालत ने आगे कहा कि पीड़ित लड़की को जिस सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा, वह इस मामले में बहुत दुर्गम होगा, क्योंकि वह और उसका परिवार ''जीवन के बहुत विनम्र वर्ग से ताल्लुक रखते हैं''।
पीठ ने कहा, ''अजन्मे बच्चे को जिस सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा, वह भी हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है क्योंकि बच्चे को निश्चित रूप से तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाएगा और समाज में उसके साथियों द्वारा उसे एक अवांछनीय बच्चे के रूप में देखा जाएगा।''
नाबालिग लड़की ने अपने पिता के माध्यम से एक याचिका दायर कर 25 सप्ताह और 4 दिन के गर्भ को समाप्त करवाने की मांग की थी,जो ''उस पर किए गए अवैध कृत्य का परिणाम'' है।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के उन फैसलों पर ध्यान दिया, जहां गर्भावस्था के 24 सप्ताह पूरे होने के बाद भी गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
इन फैसलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहाः
''मामले के तथ्यों, माननीय सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के अलग-अलग निर्णयों पर विचार करने के बाद,इस मामले में हमारी राय है कि यदि पीड़ित लड़की के जीवन को कोई खतरा नहीं है, तो हमें पहले से गठित मेडिकल बोर्ड को पीड़ित लड़की के गर्भ के चिकित्सीय समापन के लिए अनुमति देनी चाहिए।''
अदालत ने अपने आदेश में एक मामले में लाइव लॉ की रिपोर्ट पर भी संज्ञान लिया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक 26 वर्षीय महिला के 33 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करवाने की अनुमति दी थी।
''इस अदालत ने X through her father Vs. State of Uttarakhand, 2022 SCC Online Utt 61 के मामले में विशेषज्ञों की टीम को 16 वर्षीय लड़की के 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी थी। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने लाइव लॉ में रिपोर्ट किए गए एक मामले में 26 साल की एक महिला को 33 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करवाने की अनुमति दी है।''
केस टाइटल-'एक्स' उसके पिता और प्राकृतिक अभिभावक के जरिए जरिए बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य
साइटेशन- रिट याचिका (एमएस) संख्या -3105/2022
कोरम-जस्टिस संजय कुमार मिश्रा
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