किशोर की जमानत याचिका पर निर्णय लेते समय सामाजिक जांच रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिएः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2021-06-03 09:15 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जेजे अधिनियम(जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) की धारा 12 के तहत एक किशोर की जमानत अर्जी पर विचाराधीन बच्चे की सामाजिक जांच रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए फैसला किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सुवीर सहगल की एकल पीठ ने कहा, ''विश्वास के मामले (सुप्रा) में इस न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने माना है कि अधिनियम की धारा 12 के तहत एक किशोर की सामाजिक जांच रिपोर्ट पर विचार किए बिना आवेदन पर फैसला नहीं किया जा सकता है।''

उक्त मामले में, न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर की एक खंडपीठ ने निर्देश दिया था कि जमानत देने या अस्वीकार करने का निर्णय प्रोबेशन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत सामाजिक जांच रिपोर्ट और बोर्ड के समक्ष उपलब्ध किसी भी अन्य सामग्री के आधार पर किया जाएगा, न कि केवल मामले के रिकॉर्ड और जांच अधिकारी द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दायर रिपोर्ट के आधार पर।

वर्तमान मामले में, अदालत जेजे बोर्ड द्वारा पारित आदेश और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रोहतक के आदेश को खारिज को करने के लिए दायर आपराधिक आवेदन पर विचार कर रही थी। जेजे बोर्ड ने याचिकाकर्ता-बच्चे की जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उक्त आदेश के खिलाफ दायर अपील को सेशन कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

कथित अपराध के समय याचिकाकर्ता की उम्र 16 साल से कम बताई जा रही है, उस पर शिकायतकर्ता के बेटे की हत्या का मामला दर्ज किया गया था। जांच के दौरान, उसने कथित अपराध में अपनी संलिप्तता स्वीकार की थी।

शुरुआत में, सिंगल बेंच ने पाया कि विश्वास के मामले में फैसला सुनाए जाने से पहले जमानत को खारिज करने और इस तरह की अस्वीकृति को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करने के आदेश पारित किए गए थे।

कहा गया कि आम तौर पर मामले को उक्त फैसले के आलोक में नए सिरे से सुनने के लिए वापिस भेज दिया जाना चाहिए। हालांकि, जेजे अधिनियम के उद्देश्य यानी बच्चों के लिए अनुकूल दृष्टिकोण अपनाने के लिए और वयस्कों के लिए उपलब्ध न्याय वितरण प्रणाली की कठोरता का पालन न करने को ध्यान में रखते हुए कोर्ट मामले की जांच करने के लिए आगे बढ़ी।।

इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता की सामाजिक जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया और पाया कि वह एक सामान्य बच्चा था, जिसने सहकर्मी समूह के प्रभाव में अपराध किया था।

कोर्ट ने आदेश में कहा कि,

''रिपोर्ट में यह दर्ज किया गया है कि उसके परिवार के सदस्यों, दोस्तों, शिक्षकों और सहपाठियों के साथ उसके संबंध सौहार्दपूर्ण हैं। रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता, जो मैट्रिक पास है, एक सामान्य बच्चा पाया गया है।

आगे यह भी देखा गया है कि याचिकाकर्ता न तो किसी गिरोह का सदस्य है और न ही ड्रग पेडलिंग में शामिल है और न ही उसका कोई आपराधिक अतीत है। कथित अपराध का कारण ''साथी समूह प्रभाव'' के रूप में माना गया है और याचिकाकर्ता शारीरिक रूप से स्वस्थ और मानसिक रूप से स्वस्थ प्रतीत होता है जैसा कि उसके परिवार द्वारा रिपोर्ट किया गया है। जिला बाल संरक्षण इकाई, रोहतक के लीगल-कम-प्रोबेशन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट का परिणाम ध्यान देने योग्य है।''

खंडपीठ ने आगे दोहराया कि जेजे अधिनियम की धारा 12 के तहत, कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को जमानत देना एक नियम है और उसी को अस्वीकार करना एक अपवाद है।

यह भी पाया गया कि,

''बहस के दौरान, प्रतिवादी न तो यह दिखा सके और न ही यह समझाने के लिए किसी सामग्री का उल्लेख कर सके कि अगर याचिकाकर्ता को जमानत दे दी जाती है तो कैसे वह नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे के संपर्क में आएगा या किसी ज्ञात अपराधी व्यक्ति के संपर्क में आ जाएगा।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि,

''यदि एक किशोर दोषी पाया जाता है और उसे सजा दी जाती है, तो उसे अधिनियम की धारा 18 (1) (एफ) के तहत एक विशेष गृह में रखने का आदेश दिया जा सकता है,जिसकी अधिकतम अवधि तीन वर्ष है। याचिकाकर्ता ने एक वर्ष से अधिक समय हिरासत में बिताया है, इसलिए याचिकाकर्ता को और अधिक हिरासत में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।''

केस शीर्षकः विष्णु बनाम हरियाणा राज्य

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