साधारण स्पर्श POCSO एक्ट के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के लिए 'छेड़छाड़' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक फैसले में कहा कि स्पर्श के एक साधारण कार्य को पॉक्सो एक्ट की धारा 3 (सी) के पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के अपराध के लिए की गई छेड़छाड़ नहीं माना जा सकता। पॉक्सो एक्ट की धारा 3 (सी) में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से से छेड़छाड़ करता है ताकि वह योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी अन्य हिस्से में पेनेट्रेशन कर सके, बच्चे से अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराए, तो उसे "पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट" कहा जाता है।
जस्टिस अमित बंसल की पीठ ने कहा,
“स्पर्श के एक साधारण कार्य को अधिनियम की धारा 3 (सी) के तहत छेड़छाड नहीं माना जा सकता है। यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत, 'स्पर्श' एक अलग अपराध है। यदि विद्वान एपीपी की यह दलील स्वीकार की जाती है कि किसी स्पर्श को छेड़छाड़ माना जाएगा तो अधिनियम की धारा 7 निरर्थक हो जाएगी।”
अदालत ने छह साल की बच्ची से बलात्कार के मामले में अपनी दोषसिद्धि और 10 साल की सजा को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। उन्हें 2020 में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 6 (एग्रावेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
जस्टिस बंसल ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी के खिलाफ सभी उचित संदेह से परे अपराध साबित नहीं हुआ। हालांकि, अदालत ने कहा कि धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध सभी उचित संदेहों से परे उसके खिलाफ साबित हुआ था।
कोर्ट ने कहा,
“पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (सी) से पता चलता है कि किसी कृत्य को पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट मानने के लिए, आरोपी को बच्चे के शरीर के ऐसे हिस्से में छेड़छाड़ करना होगा ताकि पेनेट्रेशन हो सके। वर्तमान मामले में यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि पीड़िता के शरीर के ऐसे किसी हिस्से पर छेड़छाड़ किया गया था ताकि पेनेट्रेशन किया जा सके... इसलिए, अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी जाती है और आक्षेपित निर्णय को इस हद तक संशोधित किया जाता है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के बजाया अपीलकर्ता को पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत दोषी ठहराया जाता है।”
कोर्ट ने व्यक्ति को पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत अपराध के लिए पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए 5,000 रुपये के जुर्माने को बरकरार रखा।
केस टाइटल: शांतनु बनाम राज्य