''यौन उत्तेजक पोशाक'' टिप्पणी मामला-केरल हाईकोर्ट ने ट्रांसफर को चुनौती देने वाली सत्र न्यायाधीश की याचिका खारिज की
केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश, कोझीकोड द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पीठासीन अधिकारी, श्रम न्यायालय, कोल्लम के पद पर उनका ट्रांसफर करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। यौन उत्पीड़न के एक मामले में सिविक चंद्रन को जमानत देने के आदेश में न्यायाधीश द्वारा विवादास्पद ''यौन उत्तेजक पोशाक'' टिप्पणी करने के बाद यह ट्रांसफर आदेश जारी किया गया था।
जस्टिस अनु शिवरामन की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता, उच्च न्यायिक सेवा का सदस्य है, इसलिए श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के रूप में उनकी पोस्टिंग को किसी भी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह पोस्ट जिला न्यायाधीश के कैडर से उत्पन्न एक पद है।
जस्टिस अनु शिवरामन ने आदेश के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ते हुए कहा कि,
''मैं यह देखने में विफल हूं कि ट्रांसफर/स्थानांतरण आदेश द्वारा याचिकाकर्ता के किस कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है और मेरी राय है कि रिट याचिका में उठाए गए आधार इस याचिका में मांगे गए किसी भी अनुदान को उचित नहीं ठहराते हैं।''
जब मामले पर बुधवार को सुनवाई की गई थी तो याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दिनेश मैथ्यू जे मुरिकेन ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था कि एक न्यायिक अधिकारी को एक पद पर तीन साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले केवल तभी स्थानांतरित किया जा सकता है,यदि यह प्रशासन के लिए या विशेष परिस्थितियों के तहत ऐसा करना आवश्यक होता है। न्यायिक कर्तव्य का निर्वहन करते समय पारित एक गलत आदेश ट्रांसफर का आधार नहीं हो सकता है। इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का पद एक प्रतिनियुक्ति पद है और याचिकाकर्ता को प्रतिनियुक्ति पद पर पोस्ट करने के लिए याचिकाकर्ता की सहमति लेने की आवश्यकता थी। चूंकि याचिकाकर्ता की सहमति प्राप्त नहीं की गई है, इसलिए यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को पीठासीन अधिकारी, श्रम न्यायालय, कोल्लम के रूप में नियुक्त करना अवैध है।
हालांकि, कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ट्रांसफर आदेश केवल एक आदेश है, और आदेश में यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि यह ट्रांसफर एक गलत आदेश पारित करने के लिए किया गया है। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के पद पर ट्रांसफर प्रतिनियुक्ति नहीं है क्योंकि यह मुख्य जिला न्यायाधीश के कैडर के अंतर्गत आता है।
न्यायाधीश ने अपने एक आदेश में 12 अगस्त को कहा था कि यदि महिला ने यौन उत्तेजक पोशाक पहनी थी तो यौन उत्पीड़न की शिकायत प्रथम दृष्टया सुनवाई योग्य नहीं है। न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की थी कि ''वास्तव में शिकायतकर्ता ने खुद ऐसे कपड़े पहन रखे थे जो कुछ यौन उत्तेजक थे" और इस टिप्पणी पर बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर नाराजगी जताई गई, जिसके बाद केरल सरकार ने आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया और दलील दी गई कि सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क ''अवैधता, संवेदनशीलता की कमी, संयम और विकृति'' से ग्रस्त हैं।
सरकार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए बाद में केरल हाईकोर्ट ने इस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी थी।
केस टाइटल- एस कृष्णकुमार बनाम केरल राज्य