'आईएएस का चयन मनमौजी प्रक्रिया नहीं हो सकती', साक्षात्कार रद्द करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपीएससी को लगाई फटकार

Update: 2020-10-28 05:37 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 दिसंबर, 2019 को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जारी पत्र के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की है। संघ लोक सेवा आयोग ने उक्त पत्र जारी कर चयन समिति द्वारा आयोजित साक्षात्कार का रद्द कर दिया था।

"सिविल सेवाओं के लिए चयन, विशेष रूप से आईएएस- एक प्रतिष्ठित सेवा, मनमौजी प्रक्रिया नहीं हो सकती है। इसे कुछ मानदंडों, प्रक्रियाओं और अनुशासन का पालन करना पड़ता है। जब राज्य या कोई भी साधन उक्त अनुशासन का पालन करने में विफल रहता है, तो यह निहित स्वार्थों द्वारा कुशासन और दुरुपयोग का कारण बन सकता है। वर्तमान मामले में साक्षात्कार को रद्द करने को एकाकी घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह चयन प्रक्रिया में एक गहरी गड़बड़ी का प्रतिनिधित्व करता है, जो कि उचित रूप से और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। जब अदालत यह पाति है कि क्रमिक रूप से, चयन तंत्र को बाधित किया जाता है, तो वह आंख बंद नहीं कर सकता है। ऐसे मामले में रिट अधिकार क्षेत्र के प्रयोग द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी ताकि यह जांच की जा सके कि क्या चयन के लिए निर्धारित मानदंडों का पालन किया गया था, और यदि नहीं, तो उपचारात्मक उपायों पर विचार किया जाए। वर्तमान मामले में परिस्थितियां संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप की मांग करती हैं। इन परिस्थितियों में, यह न्यायालय मानती है कि वर्तमान रिट याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य है।"

वर्तमान याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए, जस्ट‌िस प्रथिबा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा कि जब अदालत को पता चलता है कि चयन तंत्र को बाधित किया जा रहा है, तो वह आंख नहीं मूंद सकती।

कोर्ट ने कहा इस तरह के मामले में यह देखने के लिए कि क्या चयन के लिए निर्धारित मानदंडों का पालन किया गया था, और यदि नहीं, तो, उपचारात्मक उपायों पर विचार करने के लिए रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।

यह आदेश एक सिविल विविध आवेदन में आया है, जिसमें वर्तमान रिट याचिका को सुनवाई योग्य मानने पर, इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि याचिकाकर्ता गैर-राज्य सिविल सेवा अधिकारी हैं और राजस्थान कैडर के हैं। इसलिए, वर्तमान याचिका को सुनने का उपयुक्त अधिकार केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, जयपुर को होना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने कहा कि यूपीएससी ने शुरू में 31 दिसंबर 2019 को साक्षात्कार के लिए तिथि निर्धारित की थी, हालांकि, उम्मीदवारों की संख्या को देखते हुए, इसने साक्षात्कार की तिथि एक जनवरी , 2020 तक बढ़ा दी थी।

उनके अनुसार, उम्मीदवार 31 दिसंबर, 2019 को यूपीएससी में पहुंचे, हालांकि, उन्हें आश्चर्य हुआ, जब उन्हें बताया गया कि चयन समिति को बुलाया नहीं गया है, क्योंकि दो सदस्य, जिन्हें भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाना था, उन्हें नियुक्त नहीं किया गया है।

यह मानते हुए कि कैट के पास उपचार मौजूद है, पटवालिया ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 226 के तहत इस अदालत की शक्ति प्रकृति में समग्र है और वैकल्पिक उपाय का अस्तित्व इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को इस मुद्दे के निस्तारण से अलग नहीं करता है।

न्यायालय के अवलोकन

क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर, अदालत ने कहा कि किसी भी मामले में सुनवाई और रिकॉर्ड्स का प्रसारण आभासी होने के कारण, महामारी के कारण ऐसा हो रहा है, यह अदालत इस रिट याचिका को खारिज करने के लिए मजबूर नहीं है।

यह ध्यान में रखते हुए कि चयन समिति की बैठक को रद्द कर दिया गया था, क्योंकि यूनियन ऑफ इंडिया ने चयन समिति में शामिल खुद द्वारा नियुक्त किए जाने वाले अपने दो सदस्यों को नहीं भेजा था, अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि केवल एक वैकल्पिक उपाय करना पर्याप्त नहीं है, यह उपाय भी प्रभावी होना चाहिए।

अदालत ने कहा, 'महामारी के दौरान, लगभग सभी कोर्ट और ट्रिब्यूनल बहुत कम से कम काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता को कैट के पास भेजने से, आईएएस के लिए चयन के लिए उनकी उम्मीदवारी में और देरी हो सकती है। हालांकि, महामारी के दौरान कैट कार्य कर सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यूनतम स्तर पर कार्य किया जा सकताहै। ऐसी परिस्थितियों में, याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना को अस्वीकार करने पर्याप्त अन्याय होगा....चयन समिति की बैठक को रद्द करने की रिट अधिकार क्षेत्र में जांच की जानी चाहिए। '

इसलिए, अदालत ने याचिका को बरकरार रखा है और 27 नवंबर को बहस के लिए मामला उठाएगी।

केस टाइटल: अकुल भार्गव बनाम यूपीएससी

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