वेट लिस्ट बढ़ाने की सेलेक्शन कमेटी की सिफारिश सरकार की मंजूरी के बिना उम्मीदवारों को कोई अधिकार नहीं देती: जेकेएल हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि उक्त सिफारिश को स्वीकार करने में सरकार के निर्णय के बिना वेट लिस्ट के विस्तार के लिए सेलेक्शन कमेटी द्वारा की गई सिफारिश संबंधित उम्मीदवारों को वेट लिस्ट के विस्तार की मांग करने का कोई अधिकार नहीं देती।
जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता ने उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें रहबर-ए-खेल के पद के लिए इंगेजमेंट के उनके दावे को खारिज कर दिया गया।
उपलब्ध रिकॉर्ड का सहारा लेते हुए बेंच ने कहा कि आधिकारिक प्रतिवादियों ने जिला कुपवाड़ा के लिए रहबर-ए-खेल के रूप में इंगेजमेंट के लिए पात्र उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए, जिसमें याचिकाकर्ता ने भाग लिया और चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद उसे योग्यता सूची के क्रम नंबर 21 पर रखा गया। तदनुसार, उत्तरदाताओं ने लास्ट सेलेक्शन लिस्ट जारी की, जिसके अनुसार पहले 17 उम्मीदवारों का चयन किया गया जबकि तीन उम्मीदवारों की वेट लिस्ट भी प्रकाशित की गई।
कोर्ट ने आगे कहा कि चयन सूची के तीन उम्मीदवारों और वेट लिस्ट के उम्मीदवार ने इंगजमेंट लेने का विकल्प नहीं चुना। इस तरह क्रम नंबर 2 और 3 पर आने वाली वेट लिस्ट के दो उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया, जिसके बाद अध्यक्ष चयन समिति ने दिनांक 06.0.2019 को महानिदेशक, युवा सेवा एवं खेल को पत्र भेजकर वेट लिस्ट को बढ़ाकर चार अभ्यर्थियों तक करने की अनुमति मांगी, जो स्वीकार नहीं की गई। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता के मुख्य तर्क से निपटते हुए कि वेट लिस्ट के अध्यक्ष यानी प्रतिवादी नंबर 3 ने प्रतीक्षा सूची को रिक्तियों का 25% बनाकर विस्तारित करने की अनुमति मांगी और ऐसा ही किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि मात्र प्रतिवादी नंबर 3 की वेट लिस्ट को बढ़ाने के लिए सरकार के निर्णय के बिना उक्त सिफारिश को स्वीकार करने की सिफारिश याचिकाकर्ता को कोई अधिकार नहीं देती कि वह वेट लिस्ट को बढ़ाने के लिए उत्तरदाताओं को निर्देश दे सके ताकि उसे उसमें शामिल किया जा सके और उसके बाद उसके पक्ष में इंगेजमेंट आदेश जारी करें।
कानून की उक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए बेंच ने सेठी ऑटो सर्विस स्टेशन और अन्य बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य (2009) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दृढ़ भरोसा रखा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया,
"विभागीय फाइल में टिप्पणियों को प्रभावी आदेश होने के लिए कानून की मंजूरी नहीं है। अधिकारी द्वारा की गई टिप्पणी विषय पर उनके दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है। यह विभाग के अन्य अधिकारियों और अंतिम निर्णय लेने वाले प्राधिकरण के लाभ के लिए आंतरिक उपयोग और विचार के लिए अधिकारी द्वारा राय से ज्यादा कुछ नहीं है। यह जोड़ने की आवश्यकता नहीं है कि आंतरिक टिप्पणियां बाहरी जोखिम के लिए नहीं हैं। फ़ाइल में टिप्पणियां निष्पादन योग्य आदेश में समाप्त होती हैं, पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित करती हैं, केवल जब यह विभाग में अंतिम निर्णय लेने वाले प्राधिकारी तक पहुंचता है, उसका अनुमोदन प्राप्त करता है और अंतिम आदेश संबंधित व्यक्ति को सूचित किया जाता है।"
उपरोक्त चर्चा के परिणामस्वरूप बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता इस न्यायालय को यह विश्वास दिलाने में असमर्थ रहा है कि उसके पक्ष में अधिकार मौजूद है ताकि प्रतिवादियों को उम्मीदवारों की वेट लिस्ट की सीमा बढ़ाने के लिए निर्देश मांगा जा सके।
तदनुसार खंडपीठ ने आधारहीन बताते हुए याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल : खालिद जहूर खान बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य
साइटेशन : लाइवलॉ (जेकेएल) 243/2022
कोरम : जस्टिस संजय धर
याचिकाकर्ता के वकील : मीर मंसूर।
प्रतिवादी के वकील : सज्जाद अशरफ
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