धारा 428 (सीआरपीसी) – दोषसिद्धि से पहले की हिरासत अवधि को सजा से कम करने का प्रावधान उम्रकैदियों के लिए भी लागू : मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2021-07-08 03:33 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने गत सोमवार को व्यवस्था दी कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 428 के तहत दोषसिद्धि से पहले काटी गयी हिरासत अवधि को सजा से घटाने का प्रावधान आजीवन कारावास भुगत रहे अपराधियों के लिए भी लागू होगा।

हाईकोर्ट ने कहा है कि आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अपराधी द्वारा जांच, पूछताछ अथवा ट्रायल के दौरान भुगती गयी हिरासत अवधि को दोषसिद्धि के बाद घोषित सजा में से कम किये जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति एम एम सुन्दरेश और न्यायमूर्ति आर एन मंजूला की बेंच एक फरवरी 2018 के मद्रास सरकारी आदेश के मद्देनजर आजीवन कारावास की सजा काट रहे अपराधियों की समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉरपस) याचिकाओं पर विचार कर रही थी।

पृष्ठभूमि

इस मामले में सत्र अदालत ने एक अभियुक्त को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 392 (डकैती) के तहत आने वाले अपराधों का दोषी पाया था और तदनुसार, क्रमश: आजीवन कारावास और 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनायी थी।

एक फरवरी, 2018 को मद्रास गवर्नमेंट ने एक आदेश जारी किया था जिसके तहत तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. एम. जी. रामचंद्रन की 100वीं जयंती के अवसर पर अपराधियों की समय-पूर्व रिहाई की अनुमति दी गयी थी। संबंधित आदेश के अनुरूप राहत के लिए आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे उन्हीं लोगों को पात्र बताया गया था जिन्होंने दो फरवरी 2018 को वास्तविक तौर पर 10 साल जेल की सजा काट ली थी।

तदनुसार, अभियुक्त की पत्नी ने हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष याचिका दायर की थी और उपरोक्त सरकारी आदेश के दायरे में समय पूर्व रिहाई के पात्र कैदियों की सूची में अपने पति का नाम भी शामिल करने की मांग की थी। हालांकि एकल बेंच ने सात जनवरी 2019 के आदेश के जरिये इस अनुरोध को इस आधार पर ठुकरा दिया था कि अभियुक्त ने 10 वर्ष की अनिवार्य सजा काटने के बजाय 25 फरवरी 2018 तक नौ साल 24 दिन की ही वास्तविक सजा पूरी की थी।

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट की एकल बेंच के समक्ष एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गयी थी और 15 नवम्बर, 2019 के आदेश के जरिये हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की पत्नी को राहत प्रदान करने की अनुमति दी थी। मौजूदा मामले में एकल बेंच के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गयी है।

टिप्पणियां :

सीआरपीसी की धारा 428 की न्यायिक व्याख्या की जांच करने के क्रम में कोर्ट ने 'भागीरथ एवं अन्य बनाम दिल्ली सरकार' मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख किया, जहां इस बात की पुष्टि की गयी थी कि सीआरपीसी की धारा 428 उन मामलों पर भी लागू है जहां अपराधी को आजीवन कारावास की सजा दी गयी है। इस तरह के निर्णय के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने उस तथ्य का संज्ञान लिया था कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले, जिनमें अभियुक्त लंबे समय तक विचाराधीन कैदी के तौर पर कैद में रहते हैं, वे उम्रकैद की सजा वाले मामले होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

"उन्हें धारा 428 के लाभ से वंचित करना, ऐसे उन अधिकांश मामलों से इस उदार प्रावधान को वापस लेना है, जिनमें इस तरह के लाभ की आवश्यकता होगी और जहां यह न्यायोचित भी होगा।"

इतना ही नहीं, कोर्ट ने 'कुमार बनाम तमिलनाडु सरकार' मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में आदेश पर भी भरोसा जताया, जिसने यह कहा था कि उम्रकैद की सजा पाये अपराधी को भी सीआरपीसी की धारा 428 का लाभ मिल सकता है और तदनुसार, जेल अधिकारियों के लिए अनिवार्य है कि वे ऐसे अपराधियों की समय से पहले रिहाई सुनिश्चित करने के लिए दोषसिद्धि से पहले हिरासत में बिताई अवधि का ब्योरा उपलब्ध करायें।

कोर्ट ने उपरोक्त फैसलों को उचित श्रेय देते हुए व्यवस्था दी,

"इस प्रकार, उपरोक्त आदेशों के आलोक में और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 428 में निहित प्रावधानों का संज्ञान लेते हुए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि 'सेट ऑफ' का प्रावधान उम्रकैद की सजा पाये व्यक्ति के लिए लागू होगा।"

तदनुसार, कोर्ट ने निचली अदालत को यह निर्देश देते हुए अपील ठुकरा दी कि वह उम्रकैद की सजा पाये संबंधित व्यक्ति की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए प्रोबेशन ऑफिसर और अन्य जेल अधिकारियों से रिपोर्ट हासिल करे।

केस टाइटल : गृह सचिव बनाम ए. पलानीस्वामी उर्फ पलानीअप्पन

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