धारा 138 एनआई एक्ट- यदि दोषी सीधे शिकायतकर्ता को जुर्माना अदा करता है तो चेक बाउंस का मामला बंद किया जा सकता हैः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस मामले में दोषी सीधे शिकायतकर्ता को जुर्माना राशि का भुगतान कर सकता है। अदालत में जुर्माना राशि जमा करना आवश्यक नहीं है।
इस मामले में अभियुक्त द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि की पुष्टि की थी लेकिन साधारण कारावास की सजा को संशोधित करते हुए 7,17,000/- रुपये का जुर्माना की सजा में बदल दिया। निचली अदालत में जुर्माने की राशि जमा करने के लिए आरोपी को छह महीने की अवधि दी गई थी।
इसके बाद आरोपी ने मुआवजे/जुर्माने की पूरी राशि का भुगतान सीधे शिकायतकर्ता को कर दिया और शिकायतकर्ता द्वारा भुगतान की रसीद भी जारी की गई। उक्त रसीद को निचली अदालत के समक्ष पेश किया गया और आरोपी ने निचली अदालत से मामले को बंद करने और उसके खिलाफ लंबित गैर-जमानती वारंट को वापस लेने का अनुरोध किया। लेकिन, उक्त याचिका को निचली अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निर्देश निचली अदालत में जुर्माने की राशि जमा करने का था और चूंकि उसने शिकायतकर्ता को सीधे राशि का भुगतान किया है, इसलिए अदालत शिकायतकर्ता द्वारा जारी धन की पावती के संबंध में रसीद को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।
इस आदेश को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शिकायतकर्ता ने एक हलफनामा भी दायर किया जिसमें कहा गया कि उसे मुआवजे की पूरी राशि मिल गई है और उसके द्वारा एक रसीद जारी की गई है।
इस संबंध में जस्टिस विजू अब्राहम ने शिवनकुट्टी बनाम जॉन थॉमस (2012(4) केएलटी 21) में की गई निम्नलिखित टिप्पणियों का उल्लेख किया,
"............. लेकिन अगर अदालत शिकायतकर्ता को सीधे मुआवजे के रूप में जुर्माना के भुगतान की अनुमति देती है, तो यह आरोपी को मुआवजे के रूप में पूरा जुर्माना सीधे शिकायतकर्ता को भुगतान करने में सक्षम बनाता है, जैसा कि सीसी 785/2003 में सजा के मामले में, मजिस्ट्रेट इस बात पर जोर नहीं दे सकता है कि जुर्माना न्यायालय में भुगतान किया जाना है और इसका भुगतान सीधे शिकायतकर्ता को नहीं किया जा सकता है और शिकायतकर्ता को फॉर्म संख्या 20 में आवश्यक प्रविष्टियां करने के बाद ही भुगतान किया जाना है। ऐसे मामले में जब शिकायतकर्ता द्वारा मुआवजे की संतुष्टि के संबंध में बयान दर्ज किया जाता है तो मजिस्ट्रेट को उस बयान के आधार पर फॉर्म संख्या 20 में आवश्यक प्रविष्टि करनी होती है, जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357(3) के तहत देय मुआवजे के मामले में होता है....."
मौजूदा मामले में कोर्ट ने कहा कि जुर्माना अदा करने के आदेश का "पर्याप्त अनुपालन" है। परिवादी ने जुर्माने की पूरी राशि की प्राप्ति स्वीकार कर ली है।
इसलिए, न्यायालय ने नीचे की अदालत को पक्षों के बीच समझौते के तथ्य को दर्ज करते हुए जुर्माना रजिस्टर में आवश्यक प्रविष्टि करने का निर्देश दिया, जैसे कि जुर्माना वसूल किया गया और शिकायतकर्ता को भुगतान किया गया।
केस शीर्षक: राजेश्वरी बनाम केरल राज्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 2
केस नंबर: Crl.MC No.6699 of 2021
कोरम: जस्टिस विजू अब्राहम
वकील: याचिकाकर्ता के लिए वी जॉन सेबेस्टियन राल्फ, प्रतिवादी के लिए सी अनिलकुमार, राज्य के लिए पीपी एस रेखा