बच्चों को 'मानक' नैतिक मूल्य सिखा रहे स्कूलों को आसपास लिकर रेस्टोरेंट होने से चिंता करने की जरूरत नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2021-10-18 09:35 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों के मुताबिक स्टूडेंट्स को नैत‌िम मूल्य सिखा रहे स्कूलों को यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि उनके आसपास के क्षेत्र में ल‌िकर रेस्टोरेंट होने के कारण किसी छात्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने यह टिप्‍पणी एक स्कूल के पास एक रेस्टोरेंट को शराब लाइसेंस देने के आबकारी विभाग के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए की।

मामला

देवराम मुंडे ने दो अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ याचिकाकर्ता स्कूल के आसपास के क्षेत्र में स्थापित होटल मूनलाइट नामक एक रेस्तरां को शराब लाइसेंस देने के राज्य आबकारी विभाग के आदेश को चुनौती देते हुए मौजूदा याचिका दायर की थी।

इससे पहले पुणे के कलेक्टर ने याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है, शराब लाइसेंस को स्थानांतरित करने के लिए रेस्तरां मालिक की ओर से की गई प्रार्थना को खारिज कर दिया था। हालांकि, राज्य उत्पाद शुल्क कमिश्नर ने अपील के बाद लाइसेंस दे दिया था।

राज्य आबकारी आयुक्त के आदेश को बाद में राज्य के आबकारी विभाग के प्रधान सचिव ने बरकरार रखा। उन्होंने कहा कहा कि रेस्तरां के कारण कोई कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा नहीं हो रही है और यह भी रेखांकित किया गया था कि रेस्तरां स्कूल से 75 मीटर की वैधानिक दूरी से परे था। जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने रेस्तरां को लाइसेंस देने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की।

फैसला

न्यायालय ने शुरुआत में टिप्‍पणी की कि राज्य उत्पाद शुल्क आयुक्त ने नियमों के अनुसार कानून में स्पष्ट स्थिति पर उचित रूप से विचार किया था और एक सुविचारित और विस्तृत आदेश पारित किया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस विभाग के पास यह सुझाव देने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि स्कूल के आसपास इस तरह के रेस्तरां के कारण कानून-व्यवस्था की कोई स्थिति पैदा हो रही थी।

कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि पिछले 10 से 12 वर्षों से शराब लाइसेंस वाला एक अन्य रेस्तरां स्कूल के नजदीक में काम कर रहा था, लेकिन याचिकाकर्ताओं (स्कूल मालिकों) ने उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं उठाई।

कोर्ट ने इस पृष्ठभूमि में कहा, "वर्तमान तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता के संस्थान को इस तरह की राय नहीं बनानी चाहिए थी कि उनके शिक्षण संस्थान द्वारा दी जा रही शिक्षा इतनी नाजुक है कि छात्र आसानी से आसपास के एक रेस्तरां में शराब परोसने से प्रभावित हो जाएगा। यह दो कारणों से है। सबसे पहले, इस शैक्षणिक संस्थान के नजदीक पिछले 10 से 12 वर्षों शराब लाइसेंस वाला एक अन्य रेस्तरां कार्य कर रहा है, जिसके बारे में संस्‍थान ने कभी चिंता नहीं जाहिर की।

दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि बच्चों में सीखने की गुणवत्ता और नैतिक मूल्यों का समावेश उस स्तर का है, जैसा कि 'राष्ट्रपिता' ने हमारे नागरिकों को आत्मसात करने की इरादा जाहिर किया था, तो याचिकाकर्ता की संस्था को किसी भी छात्र के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं होना चाहिए।"

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि एक शैक्षणिक संस्थान निश्चित रूप से आदर्श नागरिक बनाने में योगदान देता है। साथ ही कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों को मजबूत नैतिक मूल्यों को सिखाना अनिवार्य है ताकि उन्हें जीवन में कठिन यात्राओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया जा सके।

केस का शीर्षक - देवराम सावलेराम मुंडे और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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