धारा 143A एनआई एक्ट| अंतरिम मुआवजे के लिए आवेदन पर निर्णय लेते समय 'अभियुक्त के आचरण' पर विचार किया जाए: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-06-24 06:55 GMT

Karnataka High Court

कर्नाटक हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि अदाकर्ता (drawee) द्वारा चेक ड‌िसऑनर के मामलों में, एनआई एक्ट 1881 की धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजे की मांग संबंधी आवेदन पर फैसला करते समय मजिस्ट्रेट अदालतों को आरोपी के आचरण पर विचार करना चाहिए।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कहा, मजिस्ट्रेटों को यह निर्देश देना आवश्यक हो गया है कि अधिनियम की धारा 143ए के तहत दायर आवेदनों पर विचार करते समय, आरोपी के आचरण पर ध्यान दें। यदि आरोपी अनावश्यक रूप से स्थगन की मांग करके कार्यवाही से बच रहा है तो आवेदन पर विचार करना अनिवार्य हो जाएगा। यह संशोधन ऐसे प्राप्तकर्ताओं की क्षतिपू‌र्ति के लिए ही पेश किया गया है, जिन्हें बेईमान आहरणकर्ता विलंब की रणनीति अपनाकर परेशान करते हैं।

अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 143ए को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए पेश किया गया था। सरकार को चेक अनादर के लंबित मामलों में कई अभ्यावेदन प्राप्त हो रहे थे, जिसके बाद यह संशोधन पेश किया गया।

संशोधन एक सिंतबर, 2018 से प्रभावी हुआ, जिसका तात्पर्य यह था कि न्यायालय, कुछ परिस्थितियों में, अंतरिम मुआवजा दे सकता है, जो चेक की राशि के 20% से अधिक नहीं होगा और इस तरह के अंतरिम मुआवजे को उक्त संशोधन के संदर्भ में वापस लेने की अनुमति दी जा सकती है।

यदि कोर्ट धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजे के रूप में राशि जमा करने का निर्देश देता है तो आरोपी को उक्त निर्देश का पालन करना होगा और शिकायतकर्ता को कानून के अनुसार इसे वापस लेने का अधिकार है। यदि अभियुक्त न्यायालय द्वारा निर्देशित राशि को धारा 143ए के तहत जमा नहीं करता है तो यह सीआरपीसी की धारा 421 के तहत कार्यवाही शुरू करके वसूली योग्य है।

जिसके बाद कोर्ट ने कहा, "इसलिए, जो प्रावधान शुरुआत में निर्देश जैसा है, जमा राशि की वसूली के समय तक अनिवार्य और दंडात्मक हो जाता है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि जहां मजिस्ट्रेट को विवेक का प्रयोग करना है, वहां विवेक का प्रयोग दो पहलुओं पर आधारित होना चाहिए-

-जहां एक आवेदन किया जाता है, मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए कि क्या इस तरह के आवेदन पर विचार किया जाए, क्योंकि किए गए प्रत्येक आवेदन के परिणामस्वरूप 20% अंतरिम मुआवजा देने की आवश्यकता नहीं है। संशोधन के कारण और पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए ऐसे आवेदनों पर विचार करने के लिए कई कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है।

मजिस्ट्रेट को आरोपी के आचरण का विश्लेषण करने के बाद मुआवजा देना चाहिए जो कारणों को दर्ज करने के बाद 1% से 20% तक हो सकता है। किसी दिए गए मामले में यदि अभियुक्त बिना किसी अनावश्यक स्थगन की मांग के मुकदमे में सहयोग कर रहा है, किसी भी तारीख पर खुद को या अपने वकील को अनुपस्थित नहीं कर रहा है और ऐसे मामलों में मुकदमे की समाप्ति के साथ सहयोग कर रहा है, तो मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का प्रयोग करना होगा।

कोर्ट ने कहा,

इसलिए, यह वादियों के दो वर्ग बनाता है। एक जो कार्यवाही में सहयोग करेगा और दूसरा जो नहीं करेगा। ऐसे मामलों में जहां मुकदमे में अभियुक्त पूर्ण सहयोग करता है, न्यायालय इस पर विचार कर सकता है कि क्या अंतरिम मुआवजा दिया जाएगा और ऐसे मामलों में जहां आरोपी की ओर से कोई सहयोग नहीं है, अदालत आवेदन पर विचार करने के लिए आगे बढ़ सकती है।"

-किसी भी मामले में विवेक के प्रयोग का दूसरा कारक यह है कि मुआवजा 1% से 20% तक भिन्न हो सकता है। यह कानून में कहीं भी नहीं दर्शाया गया है कि अंतरिम मुआवजे की राशि एक विशेष आंकड़े की होनी चाहिए। यह 1% से 20% तक भिन्न हो सकता है। यह भिन्नता ही है जो विद्वान मजिस्ट्रेट को ऐसा मुआवजा देने के लिए विवेक का प्रयोग करने की शक्ति देती है। कानून का जनादेश यह है कि यह 20% से अधिक नहीं होना चाहिए।

पीठ ने कहा, "अधिनियम की धारा 143 ए के तहत आवेदन पर विचार करते हुए विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किए जाने वाले आदेश के लिए उपरोक्त कारकों के अनुसार विवेक अनिवार्य है।"

पीठ ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, बैंगलोर द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ वी कृष्णमूर्ति द्वारा दायर एक याचिका की अनुमति देते हुए उपरोक्त टिप्पणियां कीं, जिसमें शिकायतकर्ता डेयरी क्लासिक आइसक्रीम प्राइवेट लिमिटेड द्वारा धारा 143 ए के तहत दायर एक आवेदन की अनुमति दी गई और एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए स्थापित कार्यवाही में 10% मुआवजा जमा करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल: वी. कृष्णमूर्ति बनाम डायरी क्लासिक आइस क्रीम प्रा लिमिटेड

केस नंबर: 2022 की आपराधिक याचिका संख्या 632

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 223

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