धारा 125 सीआरपीसी | भरण-पोषण का उद्देश्य पुरुष को पत्नी और बच्चों के संबंध में नैतिक दायित्व को पूरा करने के लिए मजबूर करना है: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-07-20 07:20 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का प्रावधान, जिसके तहत भरण-पोषण का प्रावधान किया गया है, उसका उद्देश्य सामाजिक उद्देश्य को पूरा करना है। किसी व्यक्ति को उस नैतिक दायित्व को पूरा करने के लिए मजबूर करना है, जो पत्नी और बच्चों के संबंध में समाज के प्रति देय है।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव एक पति द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें सीआरपीसी की धारा 125(3) के तहत प्रतिवादी पत्नी द्वारा दायर एक आवेदन को आंशिक रूप से अनुमति दी गई थी।

मामले यह था कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी पति-पत्नी थे। विवाह के बाद दोनों के बीच विवाद शुरू हो गए और वे अलग रहने लगे। इसके बाद प्रतिवादी पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट में याचिकाकर्ता पति से गुजारा भत्ता की मांग की।

पत्नी ने आवेदन में दलील दी कि याचिकाकर्ता प्रॉपर्टी डीलर था और प्रति माह लगभग एक लाख रुपए कमा रहा था। उसने यह भी कहा था कि वह अपना खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है और याचिकाकर्ता पति ही उसके भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार था, इसलिए, उसने भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 25,000 रुपये के लिए प्रार्थना की थी। उसने सीआरपीसी की धारा 125(3) के तहत एक आवेदन दाखिल करते समय अंतरिम भरण पोषण के लिए भी प्रार्थना की।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता पति ने आवेदन का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रतिवादी पत्नी एक योग्य व्यक्ति थी, जो विवाह के समय एक कंपनी में काम कर रही थी। यह भी दलील दी गई कि वह अपनी बीमारी के कारण काम करने में असमर्थ था और अपने भरण-पोषण के लिए पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर था।

फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में पाया कि दोनों पक्षों ने अपनी सही आय और रोजगार का खुलासा नहीं किया था। अदालत ने अंतरिम गुजारा भत्ता के लिए आवेदन पर फैसला करते हुए, हालांकि, याचिकाकर्ता पति को 11,000 रुपये के मुकदमेबाजी खर्च के अलावा 10,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया। गुजारा भत्ता याचिका दायर करने की तारीख से दिया गया था।

हाईकोर्ट का विचार था कि पार्टियों की स्थिति और उनकी क्षमता पर विचार करने की आवश्यकता है ताकि एक उचित निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि क्या पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण की आवश्यकता है और यदि हां, तो किस हद तक।

अदालत ने कहा,

"धारा 125 के प्रावधान एक सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए हैं और इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी और बच्चों के संबंध में समाज के प्रति नैतिक दायित्व निभाने के लिए मजबूर करना है।"


इस प्रकार यह राय दी गई कि मौजूदा मामले में 10,000 रुपये के भरण-पोषण के आदेश को मनमाना या अवैध नहीं कहा जा सकता है, जब प्रतिवादी पत्नी के पास आय का कोई स्रोत होने का संकेत देने के लिए कोई सामग्री नहीं थी।


कोर्ट ने कहा,
"इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने अपने हलफनामे में कहा कि वह स्वरोजगार के अधीन है।"

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हालांकि, अंतरिम स्तर पर अगर पारिवारिक अदालत परिस्थितियों की समग्रता को देखते हुए प्रति माह 10,000 रुपये की दर से गुजारा भत्ता देने का आदेश पारित करती है, तो इस अदालत के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के तहत किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।"

इसी के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: विशेष तनेजा बनाम रीता

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