सीआरपीसी की धारा 125-बालिग अविवाहित बेटी केवल इस आधार पर पिता से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है कि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को दोहराया कि एक अविवाहित बेटी, जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, अपने पिता पर सीआरपीसी की धारा 125 (1) के तहत केवल इस आधार पर भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है कि उसके पास अपने भरण-पोषण के साधन नहीं हैं।
न्यायालय ने कहा कि एक अविवाहित बेटी किसी भी शारीरिक, मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद को बनाए रखने में असमर्थ है तो सीआरपीसी की धारा 125 (1) के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, हालांकि इस संबंध में दलील और सबूत अनिवार्य हैं।
जस्टिस ए बदरुद्दीन ने यह भी स्पष्ट किया कि एक अविवाहित हिंदू बेटी (विवाह होने तक) हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) का सहारा लेकर अपने पिता पर भरण-पोषण का दावा कर सकती है, बशर्ते कि वह दलील दे और साबित करे कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। हालांकि, इसके लिए विशेष रूप से अधिनियम,1956 की धारा 20 के तहत आवेदन करना होगा।
...सीआरपीसी की धारा 125 (1) के आधार पर, एक अविवाहित बेटी, जो वयस्कता प्राप्त कर चुकी है, सामान्य परिस्थितियों में भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है अर्थात केवल इस आधार पर कि उसके पास अपने भरण-पोषण के साधन नहीं हैं। साथ ही, भले ही अविवाहित बेटी, जो वयस्क हो गई है, भरण-पोषण की हकदार है, जहां ऐसी अविवाहित बेटी किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद को बनाए रखने में असमर्थ है, जिसके लिए इस संबंध में दलील और सबूत देना अनिवार्य हैं। अन्यथा, कानूनी प्रस्ताव यह है कि एक अविवाहित हिंदू बेटी (विवाह होने तक) हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) का सहारा लेकर अपने पिता पर भरण-पोषण का दावा कर सकती है, बशर्ते कि वह दलील दे और साबित करे कि वह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है। इस अधिकार को लागू करवाने के लिए उसका आवेदन/वाद अधिनियम, 1956 की धारा 20 के अधीन होना चाहिए।
याचिकाकर्ता की पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक रिवीजन याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह टिप्पणी की है। न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्नों में से एक यह था कि क्या एक अविवाहित बेटी बालिग होने के बाद भी सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है?
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है कि बेटी किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट से पीड़ित है या वह अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती है। वकील ने अपनी दलीलों को साबित करने के लिए अबिलाशा बनाम प्रकाश व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए के फैसले पर भरोसा किया।
साक्ष्य के मूल्यांकन के बाद न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं दिया गया जिससे यह दिखाया जा सके कि बेटी (दूसरी प्रतिवादी) में कोई शारीरिक या मानसिक असामान्यता है, या उसे कोई चोट लगी है जिससे वह अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती है और इसलिए, दूसरी प्रतिवादी को भरण-पोषण का अनुदान,उसके बालिग होने की तारीख से गलत है और इस तरह अदालत ने कहा कि विवादित आदेश को उस सीमा तक रद्द किया जाता है। दूसरी प्रतिवादी के भरण-पोषण की पात्रता को उसके वयस्क होने की तिथि तक सीमित किया जाता है।
न्यायालय ने हालांकि याचिकाकर्ता की पत्नी (प्रथम प्रतिवादी) को दिए गए भरण-पोषण को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट के पी सुजेश कुमार और बीजूकुमार पेश हुए
प्रतिवादियों के लिए एडवोकेट एस. राजीव, के.के. धीरेंद्रकृष्णन और लोक अभियोजक जी. सुधीर पेश हुए
केस टाइटल- गिरीश कुमार एन बनाम रजनी के वी व अन्य
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (केईआर) 46
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