धारा 321 सीआरपीसी | लोक अभियोजक को यह दिखाना होगा कि अभियोजन वापस लेने से जनहित कैसे पूरा होगा: सिक्किम हाईकोर्ट

Update: 2022-05-30 10:55 GMT

सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना है कि लोक अभियोजक, जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 321 के तहत अभियोजन वापस लेने का प्रयास करता है, उसको यह दिखाना होगा कि अभियोजन वापस लेने से कैसे जनहित की सेवा की जाएगी।

ऐसे आवेदनों की अनुमति देते समय न्यायालय को सतर्क रहना चाहिए, यदि यह केवल न्याय के उचित प्रशासन को प्रभावित करने के लिए है और इसमें कोई जनहित शामिल नहीं है।

निचली अदालत के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए जस्टिस मीनाक्षी मदन राय की एकल पीठ ने कहा,

"सीआरपीसी की धारा 321 के प्रावधान न्यायालय को व्यापक विवेक प्रदान करते हैं, ‌जिसका विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए। मामले का प्रभारी अभियोजक सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन से वापसी के लिए आवेदन दायर कर सकता है हालांकि इस तरह के एक आवेदन के लिए न्यायालय की सहमति की आवश्यकता होती है, जो न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए संतुष्ट होना चाहिए कि वापसी मुख्य रूप से सार्वजनिक हित के व्यापक उद्देश्यों के लिए, न्याय के प्रशासन के हित में है और न्यायिक विवेक को संतुष्ट करती है।"

पृष्ठभूमि

सिक्किम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग विकास निगम लिमिटेड (एसएबीसीसीओ) द्वारा 02-06-2009 को केनरा बैंक में एक चालू खाता खोला गया, जिसमें 31,78,658/- रुपये की राशि जमा की गई। 03-06-2009 से 14-12-2009 तक की अवधि के भीतर, 10 चेक जारी किए गए, जिस पर दोनों याचिकाकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए थे, जो एसएबीसीसीओ के कर्मचारियों द्वारा हस्ताक्षरित थे, याचिकाकर्ता संख्या एक एसएबीसीसीओ के उप महाप्रबंधक (वित्त और लेखा) होने के नाते और याचिकाकर्ता नं 2 एसएबीसीसीओ के प्रबंध निदेशक होने के नाते, उक्त खाते से कुल 31,78,658/- रुपये की निकासी की।

बाद में 17-09-2012 को एक्सिस बैंक में एसएबीसीसीओ के बचत बैंक खाते में 29,50,000/- रुपये जमा किए गए और 15-11-2013 को 2,29,044/- रुपये की राशि भी जमा की गई।

03-06-2009 से 16-09-2012 के बीच के तीन वर्षों में ब्याज की हानि के कारण राज्य के खजाने को कथित रूप से लगभग 13,00,000/- की हानि हुई थी। यह याचिकाकर्ताओं द्वारा पूरी राशि की निकासी के कारण हुआ।

निष्कर्ष

कोर्ट ने पीसी एक्ट, 1988 की धारा 19 और सीआरपीसी की धारा 197 से संबंधित याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करना अनावश्यक समझा।

यह माना गया कि इस तरह की याचिका को स्वीकार या अस्वीकार करते समय न्यायालय को इस बात पर विचार करना होगा कि क्या लोक अभियोजक ने सभी प्रासंगिक सामग्रियों पर अपना दिमाग लगाया है और संतुष्ट था कि अभियोजन से उसके हटने से सार्वजनिक हित की सेवा होगी।

लोक अभियोजक को याचिका दायर करने पर न्यायालय को संतुष्ट करना होगा कि उसने अपने कार्य को सही ढंग से किया है और यह न्याय के सामान्य पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं है। तदनुसार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि लोक अभियोजक द्वारा दायर आवेदन पर विचार करने पर कोई कारण नहीं बताया गया है कि कैसे सार्वजनिक हित या न्याय प्रशासन के हित की पूर्ति उस मामले को वापस लेने से होगी।

नतीजतन, पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: चंद्र सिंह राय और अन्य सिक्किम राज्य

केस नंबर: Criminal Review Petition No. 04 of 2021

कोरम: जस्टिस मीनाक्षी मदन राय

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (सिक) 4

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