आरटीआई | दिल्ली हाईकोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों से संबंधित दस्तावेजों की प्रतियां मांगने वाली याचिका पर 12 अप्रैल को सुनवाई करेगा

Update: 2023-02-16 05:11 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट इस सवाल पर विचार करने के लिए तैयार है कि क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों से संबंधित जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्रकट की जा सकती है।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में जानकारी मांगने वाली तीन याचिकाओं के बैच को 12 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

याचिकाओं में से एक डॉ. विनोद सुराणा द्वारा दायर की गई, जिसने 1990 और 1992 के बीच भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस और मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा अपने पिता पी.एस. सुरामा, मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।

सुराणा ने सिफारिश से संबंधित पूरे दस्तावेजों, रिकॉर्ड और फाइल नोटिंग की प्रमाणित प्रतियां और सिफारिशों पर आगे नहीं बढ़ने के कारणों को दर्ज करने वाले दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां मांगी।

सीआईसी ने 31 जनवरी, 2013 को सुराणा द्वारा दायर आरटीआई आवेदन को खारिज कर दिया। चूंकि उसे आदेश की सूचना नहीं दी गई, इसलिए इसे प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा विभिन्न आवेदन दायर किए गए। अधिकारियों ने कहा कि रिकॉर्ड खो जाने के कारण आदेश की जानकारी नहीं दी गई।

सुराणा ने तब हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की, जिसने 15 मार्च, 2019 को सीआईसी को अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया। बाद में सीआईसी ने उसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत सूचना देने से मना कर दिया।

अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में कहा गया कि "जो सूचना व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है, जिसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो व्यक्ति की निजता पर अवांछित आक्रमण का कारण बनता है, जब तक कि सीपीआईओ या एसपीआईओ या अपीलीय प्राधिकरण इस बात से संतुष्ट है कि व्यापक जनहित में इस तरह की जानकारी के प्रकटीकरण को प्रकटीकरण से छूट दी जानी चाहिए।

अन्य दो याचिकाएं ऐसे मामले में दायर की गई क्रॉस अपीलें हैं, जहां दिनेश कुमार मिश्रा ने 2008 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में दो न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में जानकारी मांगी।

उसने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश बृजेश कुमार और एच के सेमा द्वारा दी गई राय के बारे में जानकारी मांगी, जो कभी गुवाहाटी हाईकोर्ट के क्रमशः चीफ जस्टिस और एक्टिंग चीफ जस्टिस थे। नागालैंड राज्य द्वारा व्यक्त किए गए विचारों और कॉलेजियम द्वारा भारत सरकार को की गई सिफारिशों के बारे में भी जानकारी मांगी गई।

सीआईसी ने सीपीआईओ को नागालैंड राज्य द्वारा व्यक्त किए गए विचारों और कॉलेजियम द्वारा भारत सरकार को की गई सिफारिश के बारे में मिश्रा को जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया।

आदेश से व्यथित होकर भारत संघ ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की। मिश्रा ने सूचना उपलब्ध कराने में विफल रहने के लिए भारत संघ के खिलाफ एक और याचिका दायर की।

जस्टिस सिंह ने सुराणा द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया और पक्षों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने की स्वतंत्रता देते हुए इसे अन्य दो समान याचिकाओं के साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

अदालत ने कहा कि सीपीआईओ सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने माना कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है।

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