एक छात्र को फटकारना उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुशासनहीनता के लिए किसी छात्र को फटकारन उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं होगा।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने एक शिक्षक के खिलाफ आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कहा, "यदि किसी छात्र को अनुशासनहीनता के के लिए एक शिक्षक ने केवल फटकार लगाई और लगातार हो रही अनुशासनहीनता के कृत्यों को प्रधानाचार्य के ध्यान में लाया, जिसने स्कूल के अनुशासन और बच्चे को सुधारने के उद्देश्य से छात्र के माता-पिता को अवगत कराया, कोई भी छात्र जो बहुत भावुक है, आत्महत्या करता है तो क्या उक्त शिक्षक को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और धारा 306 आईपीसी के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए आरोपित किया जा सकता है। उक्त प्रश्न पर हमारा उत्तर 'नहीं ' है।"
मामले में 14 साल के एक लड़के ने आत्महत्या की और सुसाइड नोट में उसने अपने शिक्षक का नाम लिया। मृतक छात्रा की मां ने आत्महत्या के करीब 7 दिन बाद आईपीसी की धारा 306 के तहत एफआईआर दर्ज करायी है और आरोप लगाया कि उसके बेटे ने शिक्षक द्वारा मानसिक प्रताड़ना के कारण आत्महत्या की। एफआईआर रद्द करने की मांग को लेकर शिक्षक ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उक्त याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में यह तर्क दिया गया था कि एफआईआर में लगाए गए आरोप स्पष्ट रूप से बताते हैं कि आरोपी ने किसी भी तरह से मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया नहीं क्योंकि ऐसी कोई सामग्री रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है और यदि जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो वर्तमान कार्यवाही कुछ भी नहीं होगी, बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगी।
आईपीसी की धारा 306 और उस पर दिए गए फैसलों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा,
22. आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के लिए क्या आवश्यक है, आत्महत्या के अपराध के कमीशन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने का आरोप होना चाहिए और केवल किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मृतक के उत्पीड़न का आरोप अपने आप में पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कि अभियुक्त की ओर से ऐसी कार्रवाइयों के आरोप न हों, जिसने आत्महत्या के लिए मजबूर किया। इसके अलावा, यदि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अतिसंवेदनशील है और अभियुक्त पर लगाए गए आरोपों से अन्यथा समान रूप से स्थित व्यक्ति को आत्महत्या करने का चरम कदम उठाने के लिए प्रेरित करने की अपेक्षा नहीं की जाती है तो आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराना असुरक्षित होगा। इस प्रकार, प्रत्येक मामले की उसके तथ्यों और परिस्थितियों और आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जो अभियुक्त की कथित कार्रवाई और मृतक के मानस पर प्रभाव डाल सकती है, को ध्यान में रखते हुए जांच की आवश्यकता है।"
अदालत ने कहा कि आरोपी शिक्षक ने मृत लड़के को नियमित रूप से क्लास बंक करते हुए पाया, पहले उसे फटकार लगाई, लेकिन बार-बार कृत्यों के कारण, इस तथ्य को प्रिंसिपल के संज्ञान में लाया, जिसने माता-पिता को फोन पर स्कूल आने के लिए बुलाया।
कोर्ट ने कहा, "एफआईआर या शिकायतकर्ता के बयान में अपीलकर्ता पर किसी अन्य कृत्य का आरोप नहीं लगाया गया है। और न ही इस संबंध में कथित सुसाइड नोट में कुछ भी कहा गया है। कथित सुसाइड नोट केवल अपीलकर्ता के संबंध में रिकॉर्ड करता है, 'थैंक्स जियो (पीटीआई) ऑफ माय स्कूल'। इस प्रकार, सुसाइड नोट में भी अपीलकर्ता की ओर से उसे उस अपराध से जोड़ने के लिए किसी भी कार्य या उकसावे का उल्लेख नहीं किया गया है, जिसके लिए उस पर आरोप लगाया जा रहा है।
अपील की अनुमति देक एफआईआर को रद्द करते हुए अदालत ने कहा,
39. जहां तक सुसाइड नोट का संबंध है, उसकी सूक्ष्म जांच के बावजूद, हम केवल इतना कह सकते हैं कि सुसाइड नोट एक अपरिपक्व दिमाग द्वारा लिखा गया बयानबाजी का दस्तावेज है। इसे पढ़ने से मृतक के अति संवेदनशील स्वभाव का भी पता चलता है, जिसके कारण उसने ऐसा असाधारण कदम उठाया, जैसा कि आरोपी द्वारा कथित फटकार, जो कि उसका शिक्षक था, अन्यथा आमतौर पर एक समान परिस्थिति वाले छात्र को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित नहीं करता।
"43. हम शिकायतकर्ता के दर्द और पीड़ा से अवगत हैं जो मृतक लड़के की मां है। यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह से एक युवा जीवन खो दिया गया है, लेकिन हमारी सहानुभूति और शिकायतकर्ता की पीड़ा एक कानूनी उपाय में तब्दील नहीं हो सकती है, एक आपराधिक मुकदमा तो बिल्कुल नहीं।"
केस और सिटेशन: जियो वर्गीज बनाम राजस्थान राज्य एलएल 2021 एससी 539
मामला संख्या और तारीख: सीआरए 1164 ऑफ 2021| 5 अक्टूबर 2021
कोरम: जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी
वकील: अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट अभिषेक गुप्ता, एडवोकेट मनीष सिंघवी, प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट आदित्य कुमार चौधरी