'बच्चे के जीवित रहने या सामान्य जीवन जीने की संभावना बहुत कम': कलकत्ता हाईकोर्ट ने लगभग 35 सप्ताह के भ्रूण के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति दी

Update: 2022-02-18 10:18 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक महिला को उसके 34 सप्ताह व 6 दिन के भ्रूण को समाप्त करवाने की अनुमति दी। कोर्ट ने यह अनुमति इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए दी है कि बच्चे के जीवित रहने या सामान्य जीवन जीने की संभावना बहुत कम है।

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अगर गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करवाने की अनुमति नहीं दी जाती है तो इससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम होगा।

जस्टिस राजशेखर मंथा की पीठ इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से दायर उस याचिका पर अपना फैसला सुना रही थी,जिसमें उसने अपने लगभग 34 सप्ताह के भ्रूण का मेडिकल टर्मिनेशन करवाने की अनुमति मांगी थी। महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि तीन चिकित्सकों ने कई चिकित्सा जटिलताओं का पता लगाया गया है जो याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य के साथ-साथ भ्रूण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही हैं।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने 12 अक्टूबर, 2021 को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) रूल्स, 2021 को अधिसूचित किया था, जिसने कुछ श्रेणियों की महिलाओं के लिए गर्भावस्था की समाप्ति की गर्भावधि सीमा को 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया था।

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने आईपीजीएमईएंडआर, (एसएसकेएम अस्पताल), कोलकाता के निदेशक को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने और तदनुसार कोर्ट के समक्ष एक मेडिकल राय प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

कोर्ट ने मेडिकल सुपरिटेंडेंट-कम-वाइस प्रिंसिपल, आईपीजीएमईआर-एसएसकेएम हॉस्पिटल, कोलकाता द्वारा 15 फरवरी, 2022 को प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें नौ वरिष्ठ डॉक्टरों की एक टीम की मेडिकल राय शामिल है। इस रिपोर्ट पर विचार करने के बाद गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि,

''चिकित्सकीय रिपोर्ट में यह स्पष्ट है, कि तत्काल गर्भावस्था से पैदा होने वाले बच्चे के जीवति रहने या सामान्य जीवन जीने की संभावना बहुत कम है। मां के साथ-साथ बच्चे के लिए भी उत्पन्न होने वाले जोखिमों को साफ-साफ शब्दों में उजागर किया गया है। तथ्यों और परिस्थितियों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय याचिकाकर्ता को अधिकृत अस्पताल और/या चिकित्सा सुविधा में उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करवाने की अनुमति देता है।''

यह मानते हुए कि डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है कि इस गर्भावस्था से स्वस्थ बच्चे के पैदा होने की संभावना बहुत कम है, कोर्ट ने आगे रेखांकित किया कि,

''डॉक्टरों द्वारा व्यक्त एक स्पष्ट विचार यह है कि इस गर्भावस्था से स्वस्थ बच्चे के पैदा होने की संभावना बहुत ही कम है। अगर बच्चा पैदा भी होता है, तो भी उसके जीवित रहने की संभावना कम है। यह भी माना गया है कि भले ही चिकित्सा हस्तक्षेप से बच्चा पैदा हो जाए,फिर भी वह काफी दुर्बल होगा और उसको दीर्घकालिक बीमारियां होने की संभावना है और ज्यादा समय जिंदा नहीं रह पाएगा।''

याचिकाकर्ता के साथ-साथ उनके पति ने भी मेडिकल रिपोर्ट पर ध्यान से विचार किया है और शपथ लेते हुए कहा है कि वे चिकित्सकीय रूप से गर्भावस्था को समाप्त करवाने के इच्छुक हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने अदालत को मौखिक रूप से यह बताया कि अगर गर्भावस्था को समाप्त कर दिया जाता है या बच्चे को समय से पहले जन्म दिया जाता है, तो इससे बच्चे और उस पर पड़ने वाले सभी चिकित्सीय प्रभावों के बारे में वह जानती है।

इसके अलावा, उन्होंने हलफनामे पर भी शपथ ली है कि इस तरह की सर्जरी के दौरान अनिश्चितता होने, और याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव और मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से इंगित किए गए भविष्य के परिणामों के बावजूद, वे गर्भावस्था की समाप्ति के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं।

उन्होंने अदालत के समक्ष भी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि वे किसी भी चिकित्सक, या किसी भी अधिवक्ता को उन परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराएंगे, जो गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति की प्रक्रिया से उत्पन्न हो सकते हैं।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि, ''याचिकाकर्ता को इस तरह की प्रक्रिया के दौरान आने वाले सभी जोखिम और परिणाम (अर्थात इस स्तर पर गर्भावस्था को समाप्त करने के समय)के बारे में स्पष्ट रूप से इंगित कर दिया गया है और याचिकाकर्ता के साथ-साथ उनके पति ने भी इस पर ध्यान से विचार किया है और इस तरह के जोखिमों को स्वीकार किया है। यह भी प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता के जीवन को कोई गंभीर खतरा नहीं है।''

शर्मिष्ठा चक्रवर्ती व एक अन्य बनाम भारत संघ सचिव व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया गया,जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह के भ्रूण के टर्मिनेशन की अनुमति दे दी थी।

तदनुसार, अदालत ने प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति दे दी।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुतापा सान्याल और सुभाजीत दान ने किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अमितेश बनर्जी और अधिवक्ता टी.एम. सिद्दीकी और नीलोत्पल चटर्जी ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।

केस का शीर्षक- निवेदिता बासु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

केस उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (सीएएल) 42

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