सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी के भरण-पोषण के दावे की नामंज़ूरी उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण मांगने से नहीं रोकती : मप्र हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट शब्दों में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण आवेदन में दिए गए पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्षों का घरेलू हिंसा से महिलाओं की रोकथाम अधिनियम, 2005 के तहत मामले पर विचार करने वाली अदालत पर कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं होगा।
जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी दोहराया कि एक क़ानून के तहत तय किया गया भरण पोषण आवेदन एक अलग क़ानून के तहत भरण पोषण के दावे को ख़त्म नहीं करेगा।
पीठ ने कहा,
“…अगर, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में भरण-पोषण की मांग करने वाली पत्नी का आवेदन फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो ऐसी पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण या अन्य मौद्रिक उपाय का दावा करने से नहीं रोका जाएगा। सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन को खारिज करने में फैमिली कोर्ट द्वारा बताए गए कारणों का घरेलू हिंसा अधिनियम से निपटने वाले न्यायालयों के समक्ष लंबित मामलों के लिए कोई प्रासंगिकता नहीं है।”
मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि पति से अलग रहने के लिए पर्याप्त कारण की गैर-मौजूदगी के बारे में फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए निष्कर्षों का घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामले में दायर आवेदनों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह मानते हुए कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत लिया गया निर्णय, जो सारांश प्रक्रिया है, घरेलू हिंसा अधिनियम में उपलब्ध उपाय को बंद नहीं करेगा, अदालत ने नागेंद्रप्पा नाटिकर बनाम नीलमम्मा, (2014) 14 एससी 452 पर भी भरोसा किया।
बाद में अदालत ने भगत राम बनाम राजस्थान राज्य, 1972 एआईआर (एससी) 1502 के मामला उल्लेख करते हुए कहा:
“वस्तुतः, यह (भगत राम) आपराधिक मामला था, जो आपराधिक मुकदमे से संबंधित था। इसमें यह माना जाता है कि यदि किसी आरोपी को पहले के मुकदमे में बरी कर दिया गया, या दोषी ठहराया गया था, तो उस पर उसी अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। हालांकि, भरण-पोषण से संबंधित वर्तमान मामले की कार्यवाही के बाद से डीवी एक्ट, यह किसी अन्य न्यायालय के निष्कर्षों से प्रभावित नहीं हो सकता है, जो सारांश प्रक्रिया को लागू करने वाले निष्कर्ष में दिया गया है..."
हाईकोर्ट ने ज्ञानचंद बनाम श्रीमती रेखा (2010) मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को भी अलग बताया, जिस पर पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं ने बहुत अधिक भरोसा किया। ज्ञान सिंह मामले में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही में दिए गए निष्कर्षों को बाद में फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में प्रासंगिक माना गया। न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह ने बताया कि वर्तमान मामले में स्थिति ज्ञान सिंह मामले से उलट है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने अब अदालत से फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही में लागू करने का आग्रह किया। अदालत ने आगे रेखांकित किया कि ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही सारांश प्रकृति की है।
रजनेश बनाम नेहा और अन्य, 2021 (2) एससीसी 324 का हवाला देते हुए अदालत ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि भले ही अदालत किसी क़ानून के तहत भरण-पोषण अवार्ड पारित कर दे, जो भरण-पोषण का दावा करने वाले अलग क़ानून के तहत दावेदार को इसके तहत एक और दावा आवेदन उठाने से नहीं रोकेगा।
मामले की पृष्ठभूमि
इससे पहले न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, इंदौर ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 23 के तहत पत्नी द्वारा दायर आवेदन स्वीकार कर लिया था और पति को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 5000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। अपीलीय अदालत द्वारा भी इसी निर्देश की पुष्टि की गई थी, जिसे इस पुनर्विचार याचिका द्वारा चुनौती दी गई थी। उक्त आदेशों की आलोचना करते हुए पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी द्वारा दायर पूर्व आवेदन को परिवार अदालत ने खारिज कर दिया था।
भरण-पोषण के लिए उक्त आवेदन को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट ने कथित तौर पर यह निष्कर्ष निकाला था कि याचिकाकर्ताओं ने पत्नी को उसके वैवाहिक घर में वापस लौटने से कभी नहीं रोका और वह अपने विवेक के आधार पर पति से अलग रह रही थी।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, भरण-पोषण आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह प्रतिवादी पत्नी है, जो याचिकाकर्ता पति के साथ नहीं रहना चाहती। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष पर घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाली अदालत द्वारा दोबारा निर्णय नहीं लिया जा सकता।
केस टाइटल: भूपेन्द्र सिंह राजावत एवं अन्य बनाम रंजीता राजावत
केस नंबर: क्रिमिनल रिवीजन नंबर 527/2022
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