किसी एक श्रेणी में उम्मीदवारों की उपलब्धता न होने का मामला : राजस्थान हाईकोर्ट ने विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के बीच आरक्षित रिक्तियों की अंतर्विनिमेयता (Interchangeability) को वैध ठहराया

हमें विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को दिए गए आरक्षण को अंतर्विनिमेय बनाने यानी श्रेणीवार, एक उप-वर्ग के रिक्त पदों को दूसरे उप-वर्ग से भरने में कोई संवैधानिक बाधा नजर नहीं आ रही है।

Update: 2020-08-13 06:47 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार की तरफ से जारी उस अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जिसमें सरकार ने अपने सर्विस रूल्स में महिलाओं की रिक्तियों के आरक्षण से संबंधित एक नियम में बदलाव किया है। इस बदलाव के तहत तलाकशुदा और विधवा उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों के बीच अंतर्विनिमेयता (यदि दोनों श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी में पर्याप्त उम्मीदवार उपलब्ध न हो तो) की अनुमति दी गई है।

इस मामले को दो सदस्यीय खंडपीठ के रेफरेंस पर बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया था ताकि 22 दिसम्बर 2015 को जारी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता का निर्धारण किया जा सकें।

पृष्ठभूमि

इस नियम को भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के परंतुक के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए राजस्थान विभिन्न सेवा (प्प्संशोधन) नियम, 2015 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था या बदला गया था। जो इस प्रकार पढ़ा जाएगा-

प्रत्यक्ष भर्ती में महिला उम्मीदवारों के लिए रिक्तियों का आरक्षण 30 प्रतिशत श्रेणी के अनुसार होगा, जिसमें से एक तिहाई विधवाओं और तलाकशुदा महिला उम्मीदवारों के लिए 80ः20 के अनुपात में होगा। अगर किसी विशेष वर्ष में, विधवा या तलाकशुदा में से किसी भी एक श्रेणी के लिए अगर कोई योग्य और उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिल पाता है तो ऐसे स्थिति में खाली पद को इंटरचेंज या अदला-बदली करके द्वारा भरा जा सकता है, अर्थात तलाकशुदा महिलाओं के लिए आरक्षित खाली पद को विधवा महिला उम्मीदवार को दिया जा सकता है और विधवा महिलाओं के लिए आरक्षित खाली पद को तलाकशुदा महिला उम्मीदवार को दिया जा सकता है। वहीं विधवा और तलाकशुदा उम्मीदवारों की अनुपलब्धता की स्थिति में, खाली रह गए पदों को श्रेणी की अन्य महिला उम्मीदवारों को दे दिया जाएगा। यदि ऐसी स्थिति बनती है कि कोई योग्य और उपयुक्त महिला उम्मीदवार उपलब्ध ही नहीं है तो इन पदों को उस श्रेणी के पुरुष उम्मीदवारों द्वारा भर दिया जाएगा चाहिए जिसके लिए रिक्ति या पद आरक्षित हैं।

पहले के नियम के अनुसार तलाकशुदा और विधवाओं के लिए आरक्षित खाली पदों या रिक्तियों की स्थिति में तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को अंर्तविनिमेयता की पेशकश नहीं की जाती थी और इन आरक्षित खाली पड़े पदों को अन्य महिलाओं से भरने की अनुमति थी। जो नियम इस प्रकार था-

प्रत्यक्ष भर्ती में महिला उम्मीदवारों के लिए रिक्तियों का आरक्षण 30 प्रतिशत श्रेणीवार होगा, जिसमें से 8 प्रतिशत विधवाओं के लिए और 2 प्रतिशत तलाकशुदा महिला उम्मीदवारों के लिए होगा। अगर किसी विशेष वर्ष में, विधवा या तलाकशुदा में से किसी भी एक श्रेणी के लिए अगर कोई योग्य और उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिल पाता है तो ऐसे स्थिति में विधवा या तलाकशुदा महिला उम्मीदवारों के आरक्षित खाली पद को अन्य महिला उम्मीदवारों द्वारा भरा जाएगा या उनको यह पद दे दिए जाएंगे। यदि ऐसी स्थिति बनती है कि कोई योग्य और उपयुक्त महिला उम्मीदवार उपलब्ध ही नहीं है तो इन पदों को पुरुष उम्मीदवारों द्वारा भरा जाएगा।

कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने कहा कि अधिसूचना को देखने से पता चलता है कि यह महिला उम्मीदवारों के पक्ष में एक श्रेणी-वार आरक्षण प्रदान करता है या इसे एक कोष्ठीकरण क्षैतिज आरक्षण के रूप में जाना जाता है।

'अनिल कुमार गुप्ता व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (1995)' और 'इंद्रा साहनी आदि बनाम भारत संघ व अन्य (1992)' के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कोष्ठीकरण या बंटे हुए क्षैतिज आरक्षण के भीतर अंतर्विनिमेयता स्वीकार्य है। इस तरह की अंतर्विनिमेयता या इंटरचेंजेब्लिटी पर आपत्ति केवल तभी की जा सकती है जब इस तरह की अंतर्विनिमेयता के कारण लाए गए उम्मीदवारों से वर्टिकल या ऊर्ध्वाधर आरक्षण प्रभावित होता हो या उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।

कोर्ट ने यह भी कहा कि-

'' परंतु,विधवा और तलाकशुदा के बीच अंतर्विनिमेयता होने से इस तरह की कोई क्षति या हानि नहीं होगी यानी महिला आरक्षण के तहत दो उप वर्गों के बीच में। यदि विधवा और तलाकशुदा उप-वर्ग के बीच इस तरह के अंतर्विनिमय को अनुमति दी जाती है, तो इस तरह की अनुमति विधवा/ तलाकशुदा वर्ग के अलावा अन्य श्रेणी की महिलाओं के आरक्षण को किसी भी रूप में प्रभावित नहीं करेगी,न तो ऊर्ध्वाधर आरक्षण को और न ही क्षैतिज आरक्षण को।''

न्यायालय ने विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 36 का भी उल्लेख करते हुए कहा कि क्षैतिज आरक्षणों के बीच अंतर्विनिमयता, जो ऊर्ध्वाधर आरक्षण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं करती है,वह पहले से ही क्षैतिज आरक्षण प्रदान करने वाले नियमों की योजना के तहत मौजूद है।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 22 दिसम्बर 2015 को जारी अधिसूचना के तहत लागू किए नियम को बनाने के लिए प्रतिवादियों की विधायी क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठाया है। न ही तलाकशुदा और विधवा उम्मीदवारों को दिए गए आरक्षण की सीमा को इस मामले में चुनौती दी गई है।

इस प्रकार पीठ ने कहा कि-

यह अविवादित है कि पूरा महिला वर्ग ही एक वंचित वर्ग का गठन करता है। लेकिन, यह भी सच है कि विधवा और तलाकशुदा महिलाएं,इन सभी महिलाओं के बीच और भी अधिक कमजोर और वंचित उप-वर्ग का गठन करती हैं। इसलिए प्रतिवादियों ने इस अधिक वंचित और कमजोर उप-वर्ग के उत्थान और बेहतरी के लिए अपनी क्षमता के भीतर एक तंत्र तैयार किया है।

वहीं याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई थी कि आरक्षण का लाभ उठाने के लिए काल्पनिक या अवास्तविक तलाक लिए जाते हैं। इसका जवाब देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह दलील प्रथम दृष्टया आकर्षक नजर आती है परंतु इस दलील को ठीक साबित करने के लिए रिकाॅर्ड पर कोई भी सामग्री/ डेटा उपस्थित नहीं है। इसलिए यह दलील अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही है और खारिज करने योग्य है।

कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को दोहराते हुए याचिकाकर्ता की उस दलील को भी खारिज कर दिया है,जिसके तहत कहा गया था कि उक्त नियम कुछ कम मेधावी विधवा/तलाकशुदा महिला उम्मीदवारों को उनकी श्रेणी की अधिक मेधावी महिला उम्मीदवारों से ऊपर की ओर अग्रसर होने को मौका देगा।

पीठ ने कहा कि-

''इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि आरक्षण के विचार का तात्पर्य कम मेधावी व्यक्ति के चयन से है। साथ ही, हम यह भी मानते हैं कि सामाजिक न्याय के संवैधानिक वादे को पूरा करना है तो इस लागत को चुकाना होगा।''

आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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