राजस्थान हाईकोर्ट ने न्यायिक या प्रशासनिक मामलोंं में किसी व्यक्ति की जाति का उल्लेख नहींं करने के निर्देश दिये

Update: 2020-04-27 17:24 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट 

पिछले सप्ताह एक न्यायिक आदेश में जाति के नाम के उल्लेख के विवाद के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अधिसूचना जारी की कि किसी भी व्यक्ति जिसमें अभियुक्त भी शामिल हैं, उसकी जाति का किसी भी न्यायिक या प्रशासनिक मामले में उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।

अधिसूचना में कहा गया कि जाति का ऐसा उल्लेख "संविधान की भावना" के खिलाफ है और 2018 में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों के भी विपरीत है।

रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी आदेश में कहा कि

"इसलिए, यह सुनिश्चित करना सभी संबंधितों पर निर्भर है कि आरोपी सहित किसी भी व्यक्ति की जाति  का किसी भी न्यायिक या प्रशासनिक मामले में  उल्लेख नहीं हो।"

पिछले हफ्ते यह मुद्दा राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष दायर एक जमानत अर्जी की पृष्ठभूमि में उजागर किया गया है, जिसके शीर्षक में आवेदक की जाति का उल्लेख किया गया था। संबंधित मामले ने उस वक्त मीडिया का बहुत अधिक ध्यान आकृष्ट किया था जब इस मामले का एक वकील वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के दौरान उचित पोशाक पहनकर बेंच के समक्ष पेश नहीं हुआ था।

इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को एक पत्र लिखकर कोर्ट फाइलिंग के दौरान वाद शीर्षक/ शपथपत्रों/ मेमो (ज्ञापन) में पक्षकार की जाति का उल्लेख करने की 'प्रतिगामी प्रक्रिया' को लेकर चिंता दर्ज करायी गयी थी।

वकील अमित पई द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया था कि वाद शीर्षक (कॉज टाइटल) में पक्षकार की जाति का उल्लेख करना समानता के खास सिद्धांत के खिलाफ है। "

अधिसूचना पढ़ें



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