पॉक्सो एक्ट का मकसद नाबालिगों को अलग वर्ग मानना, ताकि यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ के मामले में गंभीर और कठोर नतीजे हों: दिल्ली ‌हाईकोर्ट

Update: 2021-12-15 10:25 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पॉक्सो एक्ट का मकसद नाबालिगों को एक अलग वर्ग मानना ​​​​है ताकि यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ या दुर्व्यवहार के मामले में गंभीर और कठोर नतीजे भुगतने पड़े। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने धारा 376, 376डी, 506 आईपीसी और 34 सहपठित पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दर्ज एक मामले में दो आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।

मामले के तथ्य यह थे कि 17 वर्षीय शिकायतकर्ता की आरोपी सूरज से एक अन्य याचिकाकर्ता लाल मोहम्मद और उसकी भाभी के माध्यम से मुलाकात हुई थी। दोनों में दोस्ती हो गई, जिसके 2 से 3 महीने बाद सूरज उसे जंगल में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया।

यह भी आरोप लगाया गया कि प्राथमिक आरोपी ने पीड़िता का अश्लील वीडियो बनाया और उसे फिर से जंगल में आने के लिए मजबूर किया, जहां उसके बलात्कार करने के बाद उसके दोस्त मौके पर पहुंच गए।

शिकायत के अनुसार, यह कहा गया था कि लड़कों ने अभियोक्ता को उसके अश्लील वीडियो दिखाकर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और धमकी दी कि अगर उसने उन सभी के साथ संभोग नहीं किया तो वे उसे इंटरनेट पर अपलोड कर देंगे।

मार्च 2018 में, अभियोक्ता का मासिक धर्म रुक गया, जिसके बाद उसने सामूहिक शोषण की घटनाओं के बारे में अपनी मां को बताया। इसके बाद एफआईआर दर्ज की गई।

उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति मांगी गई थी, जो अदालत का आदेश प्राप्त होने के बाद 2018 में कर दी गई।

जांच के दौरान पता चला कि एफआईआर दर्ज कराते समय पीड़िता की उम्र 17 साल थी। इसके बाद सितंबर 2018 में चार्जशीट दाखिल की गई और आरोप तय किए गए।

इस प्रकार याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि चूंकि दो सह आरोपी पहले ही जमानत पर रिहा हो चुके हैं, इसलिए समानता के आधार पर उन्हें जमानत दी जानी चाहिए।

दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं पर एक जघन्य अपराध का आरोप है, जिसमें अभियोक्ता को लंबे समय तक और लगातार ब्लैकमेल किया गया है और आरोप‌ियों के साथ संभोग करने के लिए मजबूर किया गया है।

यह भी तर्क दिया गया था कि आरोप तय करने या सह-आरोपियों में से एक के आरोपमुक्त होने का मामले पर कोई परिणाम नहीं है, क्योंकि पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत सजा आजीवन कारावास है, जो अभियुक्त के प्राकृतिक जीवन तक बढ़ाया जाता है, इसलिए इस मामले में जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

यह देखते हुए कि समानता के आधार पर भी जमानत नहीं दी जा सकती, कोर्ट ने कहा, "बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो न केवल सर्वाइवर के शरीर का अतिक्रमण करता है, बल्कि उसे मानसिक आघात भी देता है, जो वर्षों तक बना रह सकता है। अपराध की इस प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय ऐसे मामलों पर अत्यंत गंभीरता से विचार करने के कर्तव्य का पालन करेगा।"

अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि पीड़िता के साथ 13 साल की उम्र से लेकर 16 साल की उम्र तक शोषण किया गया और वह गर्भवती हो गई। अदालत ने दोनों आरोपियों को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि अभियोक्ता से पूछताछ होने तक जमानत नहीं दी जा सकती है ।

हालांकि , इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता युवा थे, ट्रायल कोर्ट से मुकदमे में तेजी लाने और छह महीने के भीतर अभियोजन पक्ष की जांच करने का अनुरोध किया गया।

शीर्षक: सूरज बनाम राज्य

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